महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 12 श्लोक 17-31
दादश (12) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
सत्यप्रतिज्ञ राजा युधिष्ठिर को जीते-जी पकड़ ले आने पर यदि उन्हें पुन: जुएमें जीत लिया जाय तो उनमें भक्ति रखनेवाले पाण्डव पुन: वन में चले जायँगे । इस प्रकार निश्चय ही मेरी विजय दीर्धकाल तक बनी रहेगी । इसीलिये मैं कभी धर्मराज युधिष्ठिर का वध करना नहीं चाहता । राजन ! द्रोणाचार्य प्रत्येक बात के वास्तविक तात्पर्य को तत्काल समझ लेनेवाले थे । दुर्योधन के उस कुटिल मनोभाव को जानकर बुद्धिमान् द्रोण ने मन-ही-मन कुछ विचार किया और अन्तर रखकर उसे वर दिया । द्रोणाचार्य बोले- राजन ! यदि वीरवर अर्जुन युद्धमें युधिष्ठिर की रक्षा न करते हों, तब तुम पाण्डव श्रेष्ठ युधिष्ठिर को अपने वश में आया हुआ ही समझों । तात ! रणक्षेत्र में इन्द्रसहित सम्पूर्ण देवता और असुर भी अर्जुन का सामना नहीं कर सकते हैं । अत: मुझमें भी उन्हें जीतने का उत्साह नहीं है । इसमें संदेह नहीं कि अर्जुन मेरा शिष्य है और उसने पहले मुझसे ही अस्त्र विधा सीखी है, तथापि वह तरूण है । अनके प्रकार के पुण्य कर्मो से युक्त है । विजय अथवा मृत्यु इन दोनों मे से एक का वरण करने का दृढ़ निश्चय कर चुका है । इन्द्र और रूद्र आदि देवताओं से पुन: बहुत से दिव्यास्त्रों की शिक्षा पा चुका है और तुम्हारे प्रति उसका अभर्ष बढ़ा हुआ है । इसलिये राजन ! मैं अर्जुन से लड़ने का उत्साह नहीं रखता हूं । अत: जिस उपाय से भी सम्भव हो, तुम उन्हें युद्ध से दूर हटा दो । कुन्तीकुमार अर्जुन के रण क्षेत्र से हट जाने पर समझ लो कि तुमने धर्मराज को जीत लिया । नरश्रेष्ठ ! उनको पकड़ लेने में ही तुम्हारी विजय है, उनके वध में नहीं; परंतु उपाय से तुम उन्हें पकड़ पाओगे । राजन ! पुरूषसिंह कुन्तीपुत्र अर्जुन के युद्ध से हट जानेपर यदि वे दो घड़ी भी मेरे सामने संग्राम में खड़े रहेंगे तो मैं आज सत्यधर्मपरायण राजा युधिष्ठिर को पकड़कर तुम्हारे वश में ला दूँगा, इसमें संशय नहीं है । राजन ! अर्जुन के समीप तो समरभूमि में इन्द्र आदि सम्पूर्ण देवता और असुर भी युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सकते है । संजय कहते हैं- राजन ! द्रोणाचार्य ने कुछ अन्तर रखकर जब राजा युधिष्ठिर को पकड़ लाने की प्रतिज्ञा कर ली, तब आपके मूर्ख पुत्र उन्हें कैद हुआ ही मानने लगे । आपका पुत्र दुर्योधन यह जानता था कि द्रोणाचार्य पाण्डवों के प्रति पक्षपात रखते है, अत: उसने उनकी प्रतिज्ञा को स्थिर रखने के लिये उस गुप्त बात को भी बहुत लोगों में फैला दिया । शत्रुओं का दमन करने वाले आर्य धृतराष्ट्र ! तदनन्तर दुर्योधन ने युद्ध की सारी छावनियों में तथा सेना के विश्राम करने के प्राय: सभी स्थानों पर द्रोणाचार्य की युधिष्ठिर को पकड़ लाने की उस प्रतिज्ञा को घोषित करवा दिया ।
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