महाभारत शल्य पर्व अध्याय 2 श्लोक 23-46

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द्वितीय (2) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 23-46 का हिन्दी अनुवाद

राजसिंह ! मैं युद्धस्थल में चेदियों, द्रौपदीकुमारो, सात्यकि, कुन्तिभोज तथा राक्षस घटोत्कच का भी सामना करूँगा। महाराज ! मेरे इन सहयोगियों में से एक-एक वीर भी समरांगण में कुपित होकर मुझपर आक्रमण करने वाले समस्त पाण्डवों को राकने में समर्थ हैं। फिर यदि पाण्डवों के साथ वैर रखने वाले ये सारे वीर एक साथ होकर युद्ध करें तब क्या नहीं कर सकते। राजेन्द्र ! अथवा ये सभी योद्धा पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर के अनुयायियों के साथ युद्ध करेंगे और उन सबको रणभूमि में मार गिरायेंगे। अकेला कर्ण ही मेरे साथ रहकर समस्त पाण्डवों को मार डालेगा। फिर सारे वीर नरेश मेंरी आज्ञा के अधीन हो जायँगे। राजन् ! पाण्डवों के जो नेता हैं, वे महाबली वसुदेवनन्दन श्रीकष्ण युद्ध के लिये कवच नहीं धारण करेंगे। ऐसी बात दुर्योधन मुझसे कहता था। सूत ! मेरे निकट दुर्योधन जब इस तरह की बहुत-सी बातें कहने लगा तो में यह समझ बैठा कि हमारी शक्ति से समस्त पाण्डव रणभूमि में मारे जायँगे। जब ऐसे वीरों के बीच में रहकर भी प्रयत्नपूर्वक लड़नेवाले मेरे पुत्र समरांगण में मार डाले गये, जब इसे भाग्य के सिवा और क्या कहा जा सकता है ? जैसे सिंह सियार से लड़कर मारा जाय, उसी प्रकार जहाँ लोकरक्षक प्रतापी वीर भीष्म शिखण्डी से भिड़कर वध को प्राप्त हुए, जहाँ सम्पूर्ण शस्त्रास्त्रों की विद्जहाँ गजयुद्धविशारद राजा भगदत्त मारे गये और सिंधुराज जयद्रथ का वध हो गया, जहाँ काम्बोजराज सुदक्षिण, पौरव जलसन्ध, श्रुतायु और अयुतायु मार डाले गये, वहाँ भाग्य के सिवा और क्या कारण हो सकता है ?
जहाँ सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ महाबली पाण्डयनरेश युद्ध में पाण्डवों के हाथ से मारे गये, वहाँ भाग्य के सिवा और क्या कारण है ? जहाँ बृहद्बल, महाबली मग्धनरेश, धनुर्धरों के आर्दश एवं पराक्रमी अग्रायुध, अवन्ती के राजकुमार, त्रिगर्तनरेश सुशर्मा तथा सम्पूर्ण संशप्तक योद्धा मार डाले गये, वहाँ भाग्य के सिवा दूसरा क्या कारण हो सकता है ? जहाँ शूरवीर अलम्बुष और ऋष्यशृंगपुत्र राक्षस अलायुध मारे गये, वहाँ भाग्य के सिवा और क्या कारण बताया जा सकता है ? जहाँ नारायण नाम वाले रणदुर्मद ग्वाले और कई हजार म्लेच्छ योद्धा मौत के घाट उतार दिये गये, वहाँ भाग्य के सिवा और क्या कहा जा सकता है ? जहाँ सुबलपुत्र महाबली शकुनि और उस जुआरी पुत्र वीर उलूक दोनों ही सेना सहित मार डाले गये, वहाँ भाग्य के सिवा दूसरा क्या कारण हो सकता है ? ये तथा और भी बहुत से अस्त्रवेत्ता, रणदुर्भद, शूरवीर और परिघ-जैसी भुजाओं वाले राजा एवं राजकुमार अधिक संख्या में मार डाले गये, वहाँ भाग्य के सिवा और क्या कारण बताया जाय ? सूत संजय ! जहाँ समरभूमि में नाना देशों से आये हुए देवराज इन्द्र के समान पराक्रमी बहुत-से शूरवीर महाधनुर्धर, अस्त्रवेत्ता एवं युद्धदुर्भद क्षत्रिय सारे-के-सारे मार डाले गये, वहाँ भाग्य के अतिरिक्त दूसरा क्या कारण हो सकता है ? निश्चय ही मनुष्य अपना-अपना भाग्य लेकर उत्पन्न होता है, जो सौभाग्य से सम्पन्न होता है, उसे ही शुभ फल की प्राप्ति होती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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