महाभारत शल्य पर्व अध्याय 3 श्लोक 38-53

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ११:३८, २५ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==तृतीय (3) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)== <div style="text-alig...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

तृतीय (3) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 38-53 का हिन्दी अनुवाद

जिनके रथ में कबूतर के समान रंग वाले घोड़े जुते हुए थे तथा रथ की श्रेष्ठ ध्वजा पर कचनार वृक्ष का चिन्ह बना हुआ था, उस धृष्टधुम्न को रणभूमि में उपस्थित देख आपके सैनिक भय से भाग खडे़ हुए। सात्यकि सहित यशस्वी माद्रीकुमार नकुल और सहदेव शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चलाने वाले गान्धार राजा शकुनि का तुरन्त पीछा करते हुए दिखायी दिये। जैसे साँड़ साँड़ों को परास्त करके उन्हें बहुत दूर तक खदेड़ते रहते हैं, उसी प्रकार उन सब पाण्डव वीरों ने आपके समस्त सैनिकों को युद्ध से विमुख होकर भागते देख बाणों का प्रहार करते हुए दूर तक उनका पीछा किया। नरेश्वर ! पाण्डुकुमार सव्यसाची अर्जुन आपके पुत्र की सेना के उस एक भाग को अवशिष्ट एवं सामने उपस्थित देख अत्यन्त कुपित हो उठे। राजन् ! तदनन्तर उन्होंने सहसा बाणों द्वारा उस सेना को आच्छादित कर दिया। उस सयम इतनी धूल ऊपर उठी कि कुछ भी दिखायी नहीं देता था। महाराज ! जब जगत में उस धूल से अन्धकार छा गया और पृथ्वी पर बाण-ही-बाण बिछ गया, उस समय आपके सैनिक भय के मारे सम्पूर्ण दिशाओं में भाग गये। प्रजानाथ ! उस सबके भाग जाने पर कुरूराज दुर्योधन ने शत्रुपक्ष की और अपनी दोनों ही सेनाओं पर आक्रमण किया। भरतश्रेष्ठ ! जैसे पूर्वकाल में राजा बलिने देवताओं को युद्ध के लिये ललकारा था, उसी प्रकार दुर्योधन ने समस्त पाण्डवों का आह्वान किया।
तब वे पाण्डव योद्धा अत्यन्त कुपित हो गर्जना करनेवाले दुर्योधन को बारंबार फटकारते और क्रोधपूर्वक नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करते हुए एक साथ ही उस पर टूट पडे़।। दुर्योधन भी बिना किसी घबराहट के अपने बाणोंद्वारा उन शत्रुओं को छिन्न-भिन्न करने लगा। वहाँ हमलोगों ने आपके पुत्र का अद्भुत पराक्रम देखा कि समस्त पाण्डव मिलकर भी उसे लाँघकर आगे न बढ़ सके। दुर्योधन ने देखा कि मेरी सेना अत्यन्त घायल हो रणभूमि से पलायन करने का विचार रखकर भाग रही है, परंतु अधिक दूर नहीं गयी है। राजेन्द्र ! तब युद्ध का ही दृढ़ निश्चय रखनेवाले आपके पुत्र ने उन समस्त सैनिकों को खड़ा करके उनका हर्ष बढ़ाते हुए कहा-। वीरों ! मैं भूतलपर और पर्वतों में भी कोई ऐसा स्थान नहीं देखता, जहाँ चले जाने पर तुम लोगों को पाण्डव मार न सकें; फिर तुम्हारे भागने से क्या लाभ है ? पाण्डवों के पास थोड़ी-सी सेना शेष रह गयी है और श्रीकृष्ण तथा अर्जुन भी बहुत घायल हो चुके हैं। यदि हम सब लोग यहाँ डटे रहें तो निश्चय ही हमारी विजय होगी। यदि तुम लोग पृथक्-पृथक् होकर भागोगे तो पाण्डव तुम सभी अपराधियों का पीछा करके तुम्हें मार डालेंगे, अतः युद्ध में ही मारा जाना हमारे लिये श्रेयस्कर होगा।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।