महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 6 श्लोक 22-39

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षष्ठ (6) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: षष्ठ अध्याय: श्लोक 22-39 का हिन्दी अनुवाद

पुरुजित और कुन्तिभोज दोनों सव्यसाची अर्जुन के मामा थे, द्रोणाचार्य के सायकों ने उन्हें भी उन लोकों में पहुँचा दिया, जो संग्राम में मारे जाने वाले वीरों को प्राप्त होते हैं। काशिराज अभिभू बहुतेरे काशी निवासी योद्धाओं से घिरे हुए थे। वसुदान के पुत्र ने युद्ध स्थल में उनसे उनके शरीर का परित्याग करवा दिया। अमितौजा, युधामन्यु तथा पराक्रमी उत्तमौजा ये सैंकड़ों शूरवीरों का संहार करके हमारे सैनिकों द्वारा मारे गये। भारत ! पान्चाल योद्धा मित्रवर्मा और क्षत्रधर्मा महाधनुर्धर थे। उन्हें भी द्रोणाचार्य ने यमलोक पहुँचा दिया। भरत वंशी नरेश ! आपके पौत्र लक्ष्मण ने युद्ध में योद्धाओं के स्वामी क्षत्रदेव को, जो शिखण्डी का पुत्र था, मार डाला। सुचित्र और चित्रवर्मा से दो महावीर परस्पर पिता पुत्र थे। रण भूमि में विचरते हुए इन दोनों को द्रोणाचार्य न मार डाला। महाराज ! जैसे पूर्णिमा के दिन समुद्र उमड़ पडत्रता है, उसी प्रकार वृद्धक्षेम का पुत्र भी युद्ध में उद्यत हो उठा था, परंतु उसके सारे अस्त्र शस्त्र नष्ट हो गये थे, इसलिये वह प्राण शून्य हो सदा के लिये परम शान्त हो गया । राजाधिराज ! सेनाबिन्दु का श्रेष्ठ पुत्र रण भूमि में शत्रुओं पर प्रहार कर रहा था।
उस समय कौरवेन्द्र बाह्लीक ने उसे मार गिराया। महाराज ! चेदिराज का श्रेष्ठ रथी धृष्टकेतु भी युद्ध में दुष्कर कर्म करके यमलोक का पथिक हो गया। पाण्डवों के लिये पराक्रम प्रकट करने वाले वीर सत्यधृति ने रण भूमि में शत्रुओं का संहार करके यमलोक की राह ली। कुरुश्रेष्ठ ! सेनाबिन्दु भी युद्ध में शत्रुओं का संहार करके यमलोक की राह ली। कुरुश्रेष्ठ ! सेनाबिन्दु भी युद्ध में शत्रुओं का संहार करके काल के गाल में चला गया। शिशुपाल का पुत्र राजा सुकेतु भी युद्ध में शत्रु सैनिकों का वध करके स्वयं भी द्रोणाचार्य के हाथों मारा गया। इसी प्रकार वीर सत्यधृति, पराक्रमी पदिराश्व और बल विक्रमशाली सूर्यदत्त भी द्रोणाचार्य के बाणों से मारे गये हैं। महाराज ! पराक्रम पूर्वक युद्ध करने वाले श्रेणिमान् ने युद्ध में दुष्कर कर्म करके यमलोक का आश्रय लिया है।
राजन् ! इसी प्रकार शत्रुवीरों का संहार करने वाला और उत्तम अस्त्रों का ज्ञाता पराक्रमी मागध वीर भी भीष्मजी के हाथ से मारा जाकर रण भूमि में सो रहा है। राजा विराट के पुत्र शंख और महारथी उत्तर ये दोनों युद्ध में महान् कर्म करके यमलोक में जा पहुँचे हैं। वसुदान भी युद्ध स्थल में बड़ा भारी सहार मचा रहा था। परंतु भरद्वाज नन्दन द्रोण ने पराक्रम करके उसे यमलोक पहुँचा दिया। अपने बाहुबल से सुशोभित होने वाले अश्वत्थामा ने बलवान् एवं पराक्रमी पाण्ड्यराज को मारकर यमलोक पहुँचा दिया। ये तथा और भी बहुत से पाण्डव महारथी, जिनके बारे में आप मुझसे पूछ रहे थे, द्रोणाचार्य के द्वारा बल पूर्वक मार डाले गाये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में संजय वाक्य विषयक छठा अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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