महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 91 श्लोक 1-21
एकनवतितम (90) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
अर्जुन और द्रोणाचार्य का वार्तालाप तथा एवं द्रोणाचार्य को छोड़कर आगे बढे़ हुए अर्जुन का कौरव सैनिकों द्वारा प्रतिरोध संजय कहते हैं-राजन् । दुःशासन की सेना का संहार करके सव्यसाची महारथी अर्जुन ने सिन्धुराज जयद्रथ को पाने की इच्छा रखकर द्रोणाचार्य की सेना पर धावा किया।व्यूह के मुहाने खडे़ हुए आचार्य द्रोण के पास पहुंचकर अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण की अनुमति ले साथ जोड़कर इस प्रकार कहा-। ब्रह्मन। आप मेरा कल्याण चिन्तन कीजिये। मुझे स्वस्ति कहकर आशीर्वाद दीजिये। मैं आप की कृपा से ही इस दुर्भेद्य सेना के भीतर प्रवेश करना चाहता हूं । आप मेरे लिये पिता पाण्डु भ्राता धर्मराज युधिष्ठिर तथा सखा श्रीकृष्ण के समान हैं। यह मैं आप से सच्ची बात कहता हॅु। तात । निष्पाप द्विजश्रेश्ठ। जैसे अश्वत्थामा आपके लिये रक्षणीये है, उसी प्रकार मैं भी सदैव आपे से संरक्षण पाने- का अधिकारी हूं। नरश्रेश्ठ। मैं आपके प्रसाद से इस युद्ध मे सिन्धुराज जयद्रथ को मारना चाहता हॅू। प्रभो। आप मेरी इस प्रतिज्ञा-की रक्षा कीजिये।संजय कहते हैं-महाराज। अर्जुन के ऐसा कहने पर उस समय द्रोणाचार्य ने उन्हें हंसते हुए-से उत्तर दिया-अर्जुन। मुझे पराजित किये बिना जयद्रथ को जीतना असम्भव है। अर्जुन से इतना ही कहकर द्रोणाचार्य ने हंसते-हंसते रथ, घोडे़, ध्वज तथा सारथि सहित उनके उपर तीखे बाण समूहों - की वर्शा आरम्भ कर दी। तब अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा द्रोणाचार्य के बाण-समूहों का निवारण करके बडे़-बडे़ भयंकर बाणों द्वारा उन पर आक्रमण किया। प्रजानाथ। उन्होंने द्रोणाचार्य का समादर करते हुए क्षत्रिय-धर्म आश्रय ले पुनः नौ बाणों द्वारा उनके चरणों में आघात किया। द्रोणाचार्य ने अपने बाणों द्वारा अर्जुन के उन बाणों को काटकर प्रज्वलित विष एवं अग्नि के समान तेजस्वी बाणों से श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों को घायल कर दिया। तब पाण्डुनन्दन अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा द्रोणाचार्य के धनुष को काट देने की इच्छा की। महामना अर्जुन अभी इस प्रकार विचार करही रहे थे कि पराक्रमी द्रोणाचार्य ने बिना किसी घबराहट के अपने बाणों द्वारा शीघ्र ही उनके धनुष की प्रत्यंक्षा काट डाली और अर्जुन के घोड़ों, ध्वज और सारथिको भी बींध डाला। इतना ही नही , वी द्रोणाचार्य ने मुसकराकर अर्जुन को अपने बाणों की वर्शा से आच्छादित कर दिया। इसी बीच में सम्पूर्ण अस्त्र वेत्ताओं में श्रेष्ठ कुन्तीकुमार अर्जुन ने अपने विशाल धनुष पर प्रत्यंक्षा चढ़ा दी और आचार्य से बढ़कर पराक्रम दिखाने की इच्छा से तुरंत छः सौ बाण छोडे़।
उन बाणो को उन्होने इस प्रकार हाथ में ले लिया था, मानो एक ही बाण हो।तत्पश्चात् सात सौ और फिर एक हजार ऐसे बाण छोडे़ जो किसी प्रकार प्रतिहत होने वाले नहीं थे। तदनन्तर अर्जुन ने दस-हजार बाणों द्वारा प्रहार किया। उन सभी बाणों ने द्रोणाचार्य की उस सेना का संहार कर डाला। विचित्र रीति से युद्ध करने वाले अस्त्रवेत्ता महाबली अर्जुन के द्वारा भली-भांति चलाये हुए उन बाणों से घायल हो बहुत-से मनुष्य, घोडे़ और हाथी प्राण शून्य होकर पृथ्वीपर गिर पडे़।अर्जुन बाणों से पीडित हुए बहुत तेरे रथी सारथि,अश्र, ध्वज , अस्त्र-शस्त्र और प्राणों से भी वछिंत हो सहसा श्रेष्ठ रथों से नीचे जा गिरे। अश्रव, ध्वज, अस्त्र–शस्त्र और प्राणों से भी वन्चित हो सहसा श्रेष्ठ रथों से नीचे जा गिरे । वज्र के आघात से चुर-चुर हुए पर्वतों, वायु के द्वारा संचालित हुए भयंकर बादलों तथा आग में जले हुए ग्रहों के समान रुपवाले बहुत-से हाथी धराशायी हो रहे थे ।अर्जुन के बाणों से मारे गये सहस्त्रों घोड़े रणभूमि में उसी प्रकार पड़े थे, जैसे वर्षा के जल से आहत हुए बहुत से इंस हिमालय की तलहटी में पड़े हुए हों । प्रलयकाल के सूर्य की किरणों के समान अर्जुन के तेजस्वी बाणों द्वारा मारे गये रथ, घोड़े, हाथी और पैदलों के समूह सूर्य किरणों द्वारा सोखे गये अभ्दुत जलप्रवाह के समान जान पड़ते थे ।
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