महाभारत शल्य पर्व अध्याय 8 श्लोक 1-22

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:५०, २५ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==अष्टम (8) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)== <div style="text-alig...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

अष्टम (8) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: अष्टम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

उभय पक्ष की सेना का समरांगण में उपस्थित होना एवं बची हुई दोनों सेनाओं की संख्या का वर्णन

संजय कहते हैं- जब रात व्यतीत हो गयी, तब राजा दुर्योधन ने आपके समस्त सैनिकों से कहा- महारथीगण कवच बाँधकर युद्ध के लिये तैयार हो जाय। राजा का यह अभिप्राय जानकर सारी सेना युद्ध के लिये सुसज्जित होने लगी। कुछ लोगों ने तुरन्त ही रथ जोत दिये। दूसरे चारों ओर दौड़ने लगे। हाथी सुसज्जित किये जाने लगे। पैदल सैनिक कवच बाँधने लगे तथा अन्य सहस्त्रों सैनिकों ने रथों पर आवरण डाल दिये। प्रजानाथ ! उस समय सब ओर से भाँति-भाँति के वाद्यों की गम्भीर ध्वनि प्रकट होने लगी। युद्ध के लिये उद्यत योद्धाओं और आगे बढ़ती हुई सेनाओं का महान कोलाहल सुनायी देने लगा। भारत ! तत्पश्चात मरने से बची हुई सारी सेनाएँ मृत्यु को ही युद्ध से लौटने का निमित्त बनाकर प्रस्थान करती दिखायी दीं।। समस्त महारथी मद्रराज शल्य को सेनापति बनाकर और सारी सेना को अनेक भागों मे विभक्त करके भिन्न-भिन्न दलों में खडे़ हुए।
तदनन्तर आपके सम्पूर्ण सैनिक कृपाचार्य, कृतवर्मा, अश्वत्थामा, शल्य, शकुनि तथा बचे हुए अन्य नरेशों ने राजा दुर्योधन से मिलकर आदरपूर्वक यह नियम बनाया-। हम लोगों में से कोई योद्धा अकेला रहकर किसी तरह भी पाण्डवों के साथ युद्ध न करे। जो अकेला ही पाण्डवों के साथ युद्ध करेगा अथवा जो पाण्डवों के साथ जूझते हुए वीरों को अकेला छोड़ देगा, वह पाँच पातकों और उपपातकों से युक्त होगा। आज आचार्यपुत्र अश्वत्थामा शत्रुओं के साथ अकेले युद्ध न करें। हम सब लोगों को एक साथ होकर एक दूसरे की रक्षा करते हुए युद्ध करना चाहिये। ऐसा नियम बनाकर वे सब महारथी मद्रराज शल्य को आगे करके तुरन्त ही शत्रुओं पर टूट पडे़। राजन् ! इसी प्रकार उस महासमर में पाण्डव भी अपनी सेना का व्यूह बनाकर सब ओर से युद्ध के लिये उद्यत हो कौरवों पर चढ़ आये। भरतश्रेष्ठ ! वह सेना विक्षुब्ध महासागर के समान कोलाहल कर रही थी। उसके रथ और हाथी बडे़ वेग से आगे बढ़ रहे थे, मानो किसी महासमुद्र में ज्वार उठ रहा हो ।

धृतराष्ट्र बोले-संजय ! मैंने द्रोणाचार्य, भीष्म तथा राधापुत्र कर्ण के वध का सारा वृत्तान्त सुन लिया है। अब पुनः मुझे शल्य तथा मेरे पुत्र दुर्योधन के मारे जाने का सारा समाचार कह सुनाओ। संजय ! रणभूमि में राजा शल्य धर्मराज के द्वारा कैसे मारे गये तथा भीमसेन ने मेरे महाबाहु पुत्र दुर्योधन का वध कैसे किया ?

संजय ने कहा- राजन् ! जहाँ हाथी, घोडे़ और मनुष्यों के शरीरों का महान संहार हुआ था, उस संग्राम का मैं वर्णन करता हूँ; आप सुस्थिर होकर सुनिये। माननीय नरेश ! द्रोणाचार्य, भीष्म तथा सूतपुत्र कर्ण के मारे जाने पर आपके पुत्रों के मन में यह प्रबल आशा हो गयी कि शल्य रणभूमि में सम्पूर्ण कुन्तीकुमारों का वध कर डालेंगे। भारत ! उसी आशा को हृदय में रखकर आपके पुत्रों को कुछ आश्वासन मिला और वे समरांगण में महारथी मद्रराज शल्य का आश्रय ले अपने-आपको सनाथ मानने लगे। राजन् ! कर्ण के मारे जाने से प्रसन्न हुए कुन्ती के पुत्र जब सिंहनाद करने लगे, उस समय आपके पुत्रों के मन में बड़ा भारी भय समा गया। महाराज ! तब प्रतापी महारथी मद्रराज शल्य ने उन योद्धाओं को आश्वासन दे समृद्धिशाली सर्वतोभद्रनामक व्यूह बनाकर भारनाशक, अत्यन्त वेगशाली और विचित्र धनुष को कँपाते हुए सिंधी घोड़ों से युक्त श्रेष्ठ रथपर आरूढ़ हो पाण्डवों पर आक्रमण किया।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।