महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 48 श्लोक 1-18

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अष्‍टचत्‍वारिंश (48) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: अष्‍टचत्‍वारिंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

अभिमन्‍यु द्वारा अश्‍वकेतु, भोज और कर्ण के मन्‍त्री आदि का वध एवं छ: महारथियों के साथ घोर युद्ध और उन महारथियों द्वारा अभिमन्‍यु के धनुष, रथ, ढाल और तलवार का नाश

संजय कहते है – राजन् ! तदनन्‍तर अर्जुनकुमार अभिमन्‍यु ने एक बाणद्वारा कण्र के कान में पुन: चोट पहॅुचायी और उसे क्रोध दिलाते हुए उसने पचास बाण मारकर अत्‍यन्‍त घायल कर दिया । भरतनन्‍दन ! तब राधापुत्र कर्ण ने भी अभिमन्‍यु को उतने ही बाणों से बींध डाला । उसका सारा अंग बाणोंसे व्‍याप्‍त होने के कारण वह बड़ी शोभा पा रहा था । फिर क्रोध में भरे हुए अभिमन्‍यु ने कर्णको भी बाणों से क्षत-विक्षत करके उसे रक्‍त की धारा बहानेवाला बना दिया । उस समय शूरववीर कर्ण भी बाणों से छिन्‍न-भिन्‍न और खून से लथपथ हो बड़ी शोभा पाने लगा, मानो शरत्‍काल का सूर्य संध्‍या के समय सम्‍पूर्ण रूप से लाल दिखायी दे रहा हो । उन दोनो के शरीर बाणोंसे व्‍याप्‍त होने के कारण विचित्र दिखायी देते थे । दोनो ही रक्‍त से भीग गये तथा वे दोनो महामनस्‍वी वीर फूलों से भरे हुए पलाश वृक्ष के समान प्रतीत होते थे । तदनन्‍तर, सुभद्राकुमार ने कर्णके विचित्र युद्ध करने वाले छ: शूरवीर मन्त्रियों को उनके घोड़े, सारथि, रथ तथा ध्‍वज सहित मार डाला । इतना ही नही, उसने बिना किसी घबराहट के दस-दस बाणों द्वारा अन्‍य महाधनुर्धरों को भी आहट कर दिया। वह अदभूत सी बात थी । इसी प्रकार उसने मगधराज के तरूण पुत्र अश्‍वकेतु को छ: बाणों द्वारा मारकर उसे घोड़ों और सारथि सहित रथ से नीचेगिरा दिया । तत्‍पश्‍चात् हाथी के चिन्‍ह से युक्‍त ध्‍वजावाले मार्तिकावतक नरेश एक क्षुरप्र द्वारा नष्‍ट करके अभिमन्‍यु ने बाणों की वर्षा करते हुए सिंहनाद किया । तब दु:शासन कुमार ने चार बाणों द्वारा अभिमन्‍यु के चारों घोड़ों को घायल करके एक से सा‍रथि को और दस बाणों द्वारा स्‍वयं अभिमन्‍यु को बींध डाला । यह देख अर्जुनकुमार ने क्रोध से लाल ऑखे करके सात बाणों द्वारा दु:शासन पुत्र को बींध डाला और उच्‍च स्‍वर से यह बात कही । अरे ! तेरा पिता कायर की भॉति युद्ध छोड़कर भाग गया है । सौभाग्‍य की बात है कि तू भी युद्ध करना जानता है; किन्‍तु आज तू जीवित नही छूट सकेगा । यह वचन कहकर अभिमन्‍यु ने कारीगरके मॉजे हुए एक नाराच को दु:शासन पुत्र पर चलाया; परंतु अश्‍वत्‍थामा ने तीन बाण मारकर उसे बीच में ही काट दिया । तब अर्जुनकुमार ने अश्‍वत्‍थामा का ध्‍वज काटकर शल्‍य को तीन बाण मारे । राजन् ! शल्‍य ने भी मनमें तनिक भी सम्‍भ्रम या घबराहट का अनुभव न करते हुए से गीध के पंख से युक्‍त नौ बाणों द्वारा अभिमन्‍यु को आहत कर दिया । यह एक अदभूत सी बात हुई । उस समय अभिमन्‍यु ने शल्‍य के ध्‍वज को काटकर उनके दोनो पार्श्‍वरक्षकोंको भी मार डाला और उनकों भी लोहे के बने हुए छ: बाणों से बींध दिया; फिर तो शल्‍य भागकर दूसरे रथपर चले गये । तत्‍पश्‍चात् शत्रुंजय, चन्‍द्रकेतु, मेघवेग, सुवर्चा और सूर्यभास इन पॉच वीरों को मारकर अभिमन्‍यु ने सुबलपुत्र शकुनि कों भी घायल कर दिया । तब शकुनि ने भी तीन बाणों से अभिमन्‍यु को घायल करके दुर्योधन से इस प्रकार कहा । राजन् ! यह एक-एक के साथ युद्ध करके हमें मारे, इसके पहले ही हम सब लोग मिलकर इस अभिमन्‍यु को मथ डाले । तदनन्‍तर विकर्तनपुत्र कर्ण ने रणक्षेत्र में पुन: द्रोणाचार्य से पूछा । आचार्य ! अभिमन्‍यु हमलोगों को मार डाले इसके पहले ही हमे शीघ्र यह बताइये कि इसका वध किसा प्रकार होगा ? तब महाधनुर्धर द्रोणाचार्य ने उन सबसे कहा ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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