महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 49 श्लोक 1-20

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एकोनचत्‍वारिंश (49) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: एकोनचत्‍वारिंश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


एकोनपच्‍चाशतमोध्‍याय: 3234 अभिमन्‍यु का कालिकेय, वसाति और कैकय रथियों को मार डालना एवं छ: महारथियों के सहयोग से अभिमन्‍युका वध और भागती हुई अपनी सेनाको युधिष्ठिर का आश्‍वासन देना

संजय कहते हैं – राजन् ! भगवान श्रीकृष्‍ण की बहिन सुभद्रा को आनन्दित करनेवाला तथा श्रीकृष्‍ण के ही समान चक्ररूपी आयुध से सुशोभित होनेवाला अतिरथी वीर अभिमन्‍यु उस युद्धस्‍थल में दूसरे श्रीकृष्‍ण के समान प्रकाशित हो रहा था । हवा उसके केशान्‍तभाग को हिला रही थी । उसने अपने हाथ में चक्रनामक उत्‍तम आयुध उठा रखा था ।उस समय उसके शरीर और उस चक्र को – जिसकी ओर दृष्टिपात करना देवताओं के लिये भी अत्‍यन्‍त क‍ठिन था देखकर समस्‍त भूपालगण अत्‍यन्‍त उदिग्‍न हो उठे और उन सबने मिलकर उस चक्र के टुकड़े-टुकड़े कर दिये । तब महार‍थी अभिमन्‍यु ने एक विशाल गदा हाथ मे ले ली । शत्रुओं ने उसे धनुष,रथ, खग और चक्र से भी वचित कर दिया था । इसलिये गदा हाथ मे लिये हुए अभिमन्‍यु ने अश्‍वत्‍थामा पर धावा किया । प्रज्‍वलित वज्रके समान उस गदा को ऊपर उठी हुई देख नरश्रेष्‍ठ अश्‍वत्‍थामा अपने रथ की बैठक से तीन पग पीछे हट गया । उस गदा से अश्‍वत्‍थामा के चारो घोड़ों तथा दोनो पार्श्‍वरक्षकों को मारकर बाणों से भरे हुए शरीरवाला सुभद्राकुमार साही के समान दिखायी देने लगा । तदनन्‍तर उसने सुबल पुत्र कालिकेय को मार गिराया और उसके पीछे चलनेवाले सतहत्‍तर गान्‍धारों का भी संहार कर डाला । इसके बाद दस वसातीय रथियों को मार डाला । केकयों के साथ रथो और दस हाथियों को मारकर दु:शासनकुमार के घोड़ों सहित रथ को भी गदा के आधात से चूर-चूर कर डाला । आर्य ! इससे दु:शासन पुत्र कुपित हो गदा हाथ में लेकर अभिमन्‍यु की ओर दौड़ा और इस प्रकार बोला – अरे ! खड़ा रह, खड़ा रह । वे दोनो वीर एक-दूसरे के शत्रु थे । अत: गदा हाथ में लेकर एक दूसरे का वध करनेकी इच्‍छा से परस्‍पर प्रहार करने लगे । ठीक उसी तरह, जैसे पूर्वकाल में भगवान शंकर और अन्‍धकासुर परस्‍पर गदा आघात करते थे। शत्रुओं को संताप देनेवाले वे दोनों वीर रणक्षेत्र में गदा के अग्रभाग से एक दूसरे को चोट पहॅुचाकर नीचे गिराये हुए दो इन्‍द्रध्‍वजों के समान पृथ्‍वीपर गिर पड़ें । तत्‍पश्‍चात् कुरूकुल की कीर्ति बढ़ानेवाले दु:शासन पुत्र ने पहले उठकर देखते हुए सुभद्राकुमार के मस्‍तक पर गदा का प्रहार किया । गदा के उस महान वेग ओर परिश्रम से मोहित होकर शत्रुवीरोंका नाश करनेवाला अभिमन्‍यु अचेत हो पृथ्‍वीपर गिर पड़ा । राजन् ! इस प्रकार उसे युद्धस्‍थल में बहुतसे योद्धाओं ने मिलकर एकाकी अभिमन्‍यु को मार डाला । जैसे हाथी कभी सरोवर को मथ डालता है, उसी प्रकार सारीसेना क्षुब्‍ध करके व्‍याधों के द्वारा जंगली हाथी की भॉति मारा गया वीर अभिमन्‍यु वहां अदभूत शोभा पा रहा था । इस प्रकार रणभूमि में गिरे हुए शूरवीर अभिमन्‍यु को आपके सैनिकों ने चारो ओर से घेर लिया । जैसे ग्रीष्‍म ऋतु में जंगल को जलाकर आग बुझ गयी हो, जिस प्रकार वायु वृक्षों की शाखाओं को तोड़-फोड़कर शान्‍त हो रही हो, जैसे संसार को संतप्‍त करके सूर्य अस्‍ताचल को चले गये हो, जैसे चन्‍द्रमा पर ग्रहण लग गया हो तथा जैसे समुद्र सूख गया हो, उसी प्रकार समस्‍त कौरव सेना को संतप्‍त करके पूर्ण चन्‍द्रमा के समान मुखवाला अभिमन्‍यु पृथ्‍वीपर पड़ा था; उसके सिर के बड़े-बड़े बालों (काकपक्ष) से उसकी ऑखे ढक गयी थी । उस दशा में उसे देखकर आपके महारथी बड़ी प्रसन्‍नता के साथ बारंबार सिंहनाद करने लगे । प्रजानाथ ! आपके पुत्रो को तो बड़ा हर्ष हुआ; परंतु पाण्‍डव वीरों के नेत्रों से ऑसू बहने लगा ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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