महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 46 श्लोक 1-10

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षट्चत्वारिंश(46) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: षट्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद

कौरव-सेना की व्यूधहरचना, युधिष्ठिर के आदेश से अर्जुन का आक्रमण, शल्यश के द्वारा पाण्ड्वसेना के प्रमुख वीरों का वर्णन तथा अर्जुन की प्रशंसा

संजय कहते है- भरतश्रेष्ठ । तदनन्तरर यह देखकर कि कुन्ती कुमारों की सेना का अनुपम व्यूवह बनाया गया है, जो शत्रुदल के आक्रमण को सह सकने में समर्थ और धृष्टरद्युम्नत द्वारा सुरक्षित है, शत्रुओं को संताप देने वाला युद्धकुशल कर्ण रथ की घर्घराहट, सिंहकी-सी गर्जना तथा वाद्यों की गम्भीओर ध्वननि से पृथ्वी को कांपाता और स्वीयं भी क्रोध से कांपता हुआ-सा आगे बढ़ा। उस महातेजस्वी वीर ने शत्रुओं के मुकाबले में अपनी सेना की यथोचित व्यूीहरचना करके, जैसे इन्द्रै आसुरी सेना का संहार करते हैं, उसी प्रकार पाण्डनव-सेना का विनाश आरम्भ का दिया और युधिष्ठिर को भी घायल करके दाहिने कर दिया। प्रजानाथ। (उस समय) आपके सभी सैनिक कर्ण को देखकर युद्ध की इच्छाक से हर्ष और उत्साकह में भर गये। राजन्। उस समय आपके योद्धाओं की कही हुई बातें सुनायी देने लगीं।।
सैनिक बोले- आज यह कर्ण और अर्जुन का महान् युद्ध होगा। आज राजा दुर्योधन के सारे शत्रु मार डाले जायंगे।। आज अर्जुन रणभूमि में कर्ण को देखते ही भाग खड़े होंगे। आज युद्ध में हमलोग कर्ण के ही अनुगामी होकर समरागण में कर्ण के बाणों से भरा हुआ भीषण संग्राम देखेंगे।। दीर्घकाल से जिसकी सम्भाहवना की जाती थी, वह आज इसी समय उपस्थित होगा। आज हमलोग देवासुर-संग्राम के समान भयंकर युद्ध देखेंगे।। आज अभी बड़ा भयानक युद्ध छिड़ने वाला है। आज रणभूमि में इन दोनों में से एक न एककी विजय अवशय होगी।। निश्चय ही राधापुत्र कर्ण इस महायुद्ध में अर्जुन का वध कर डालेगा अथवा इस जगत् में किस मनुष्यर के अंदर बड़े-बड़े मनसूबे नहीं उठते हैं।। संजय कहते है-कुरुनन्दजन । इस तरह नाना प्रकार की बातें कहकर कौरवों ने सहस्त्रों नगाड़े पीटे और दूसरे-दूसरे बाजे भी बजवाये।। भांति-भांति की मेरी-ध्वौनि हुई और बारंबार सैनिकों द्वारा सिंहनाद किये गये। गम्भीवर ध्वनि करने वाले ढोल और मूदंग के महान् शब्दर वहां सब ओर गूंजने लगे।।
मान्यवर नरेश। युद्ध के रंगभूमि में उतरे हुए बहु संख्यंक मनुष्य नृत्यस तथा गर्जन-तर्जन करते हुए एक दूसरे का सामना के लिये आगे बढ़े।। उनमें शूरवीर पैदल सैनिक चारों ओर से पट्टिश, खंड, धनुष-बाण, भुशुण्डी , भिन्दिपाल, त्रिशुल और चक्र हाथ में लेकर हाथियों के पैरों की रक्षा कर रहे थे। उनमें देवासुर संग्राम के समान भयंकर युद्ध छिड़ गया।। धृतराष्ट्रट ने पूछा- संजय। राधापुत्र कर्ण ने देवताओं के लिये भी अजेय तथा भीमसेन द्वारा सुरक्षित धृष्टटद्युम्नू आदि सम्पूयर्ण महाधनुर्धर पाण्डाव वीरों के जवाब में किस प्रकार व्यू्ह का निर्माण किया संजय। मेरी सेना के दोनों पक्ष और प्रपक्ष के रुप में कौन कौन से वीर थे। वे किस प्रकार यथोचित रुप से योद्धाओं का विभाजन करके खड़े हुए थे पाण्डसवों ने भी मेरे पुत्रों के मुकाबले में कैसे व्यूेह का निर्माण किया था। यह अत्यणन्तड भयंकर महायुद्ध किस प्रकार आरम्भस हुआ अर्जुन कहां थे कि कर्ण ने युधिष्ठिर पर आक्रमण कर दिया। जिन्होंभने पूर्वकाल में अकेले ही खाण्ड व वन में समस्तन प्राणियों को परास्तय कर दिया था, उन अर्जुन के समीप रहते हुए युधिष्ठिर पर कौन आक्रमण कर सकता था राधापुत्र कर्ण के सिवा दूसरा कौन है, जो जीवित रहने की इच्छा रखते हुए भी अर्जुन के सामने युद्ध कर सके। संजय कहते है-राजन्। व्यूहह की रचना किस प्रकार हुई थी, अर्जुन कैसे और कहां चले गये थे और अपने-अपने राजा को सब ओर से घेरकर दोनों दलों के योद्धाओं ने किस प्रकार संग्राम किया था यह सब बताता हूं, सुनिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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