महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 48 श्लोक 1-21

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अष्टचत्वाकरिश (48) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: अष्टचत्वाकरिश अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

कर्ण के द्वारा बहुत-से योद्धाओं सहित पाण्ड्व सेना का संहार, भीमसेन के द्वारा कर्णपुत्र भानुसेन का वध, नकुल और सात्यडकि के साथ वृषसेन का युद्ध तथा कर्ण का राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण धृतराष्ट्र् ने पूछा- संजय। कर्ण कुन्तीक पुत्रों की सेना में प्रवेश करके राजा युधिष्ठिर के पास पहुंचकर जो जनसंहार कर रहा था, उसका समाचार मुझे सुनाओ । उस समय पाण्डपवपक्ष के किन-किन प्रमुख वीरों ने युद्धस्थ ल में कर्ण को आगे बढ़ने से रोका और किन-किन को रौंदकर सूतपुत्र कर्ण ने युधिष्ठिर को पीडित किया। संजय ने कहा- राजन्। कर्ण ने धृष्टौद्युम्न आदि पाण्डतव वीरों को खड़ा देख बड़ी उतावली के साथ शत्रुसंहारकारी पाच्चालों पर धावा किया। विजय से उल्लासित होने वाले पाच्चाल वीर शीघ्रता पूर्वक आक्रमण करते हुए महामना कर्ण की अगवानी के लिये उसी प्रकार आगे बढ़े, जैसे हंस महासागर की ओर बढ़ते हैं। तदननतर दोनों सेनाओं में सहसा सहस्त्रों शंखों की ध्वसनि प्रकट हुर्इ, जो ह्रदय को कम्पित कर देती थी। साथ ही भयंकर भेरीनाद भी होने लगा। उस समय नाना प्रकार के बाणों के गिरने, हाथियों के चिग्घाहड़ने, घोड़ों के हींसने, रथ के घर्घराने तथा वीरों के सिंह-नाद करने का दारुण शब्दा वहां गूंज उठा । पर्वत, वृक्ष और समुद्रों सहित पृथ्वी , वायु तथा मेघों सहित आकाश एवं सूर्य, चन्द्रोमा, ग्रह और नक्षत्रों सहित स्वसर्ग स्प‍ष्ट, ही घुमते-से जान पड़े। इस प्रकार समस्त् प्राणियों ने उस तुमुल नाद को सुना और सब-के-सब व्य्थित हो उठे।
उनमें जो दुर्बल प्राणी थे, वे प्राय: मर गये। तत्पोश्चात् जैसे इन्द्रत असुरों की सेना का विनाश करते हैं, उसी प्रकार अत्येन्तव क्रोध में भरे हुए कर्ण ने शीघ्रतापूर्वक्‍ अस्त्रर चलाकर पाण्डेवसेना का संहार आरम्भ् किया। पाण्डोवों की सेना में प्रवेश करके बाणों की वर्षा करते हुए कर्ण ने प्रभद्रकों के सतहत्तर प्रमुख वीरों को मार डाला। तदनन्तमर रथियों में श्रेष्ठष कर्ण ने सुन्दरर पंखवाले पचीस पैने बाणों द्वारा पचीस पाच्चालों को काल के गाल में भेज दिया। वीर कर्ण ने शत्रुओं के शरीर को विदीर्ण कर देने वाले सुवर्णमय पंखयुक्त नाराचों द्वारा सैकड़ों और हजारों चेदि देशीय वीरों का वध कर डाला। महाराज। इस प्रकार समरागडण में अलौकिक कर्म करने वाले कर्ण को पाच्चाल रथियों ने चारों ओर से घेर लिया। भारत। तब उस रणक्षैत्र में धर्मात्माय वैकर्तन कर्ण ने पांच दु:सह बाणों का संधान करके भानुदेव, चित्रसेन, सेना बिन्दुर, तपन तथा शूरसेन-इन पांच पाच्चाल वीरों का संहार कर दिया। उस महासमर में बाणों द्वारा उन शूरवीर पाच्चालों के मारे जाने पर पाच्चालों की सेना में महान् हाहाकार मच गया। महाराज। फिर दस पाच्चाल महारथियों आकर कर्ण को घेर लिया, परंतु कर्ण ने अपने बाणों द्वारा पुन: उन सबको तत्कारल मार डाला। माननीय नेरश। कर्ण के दो दुर्जय पुत्र सुषेण और चित्रसेन उसके पहियों की रक्षा में तत्पकर हो प्राणों का मोह छोड़कर युद्ध करते थे। कर्ण का ज्येीष्ठं पुत्र महारथी वृषसेन ष्टष्ठ्रक्षक था। वह स्वमयं ही कर्ण के ष्टष्ठभाग की रक्षा कर रहा था। उस समय प्रहार करने वाले राधा पुत्र कर्ण को मार डालने की इच्छा से धृष्टगद्युम्न , सात्य कि, द्रौपदी के पांचों पुत्र, भीमसेन, जनमेजय, शिखण्डीस, प्रमुख प्रभद्रक वीर, चेदि, केकय और पाच्चाल देश के योद्धा, नकुल-सहदेव तथा मत्य् देशीय सैनिकों ने कवच से सुसज्जित हो उस पर धावा बोल दिया ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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