महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 54 श्लोक 21-42

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चतुःपञ्चाशतम (54) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: चतुःपञ्चाशतम अध्याय: श्लोक 21-42 का हिन्दी अनुवाद

राजन्। शिखण्डीक को कृपाचार्य के बाणों का ग्रास बनकर पीडित होते देख चित्रकेतु का पुत्र महाबली सुकेतु उसकी सहायता कि लिये तुरंत आगे बढ़ा । सुकेतु अमेय आत्म्बल से सम्पलन्न था। वह युद्धस्थेल में बहुसंख्य्क पैने बाणों द्वारा कृपाचार्य को आच्छागदित

करता हुआ उनके रथ के समीप आ पहुंचा। नृपश्रेष्ठक । ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले ब्राह्मण कृपाचार्य को सुकेतु के साथ युद्ध में तत्प्र देख शिखण्डीर तुरंत वहां से भाग निकला । राजन्। तदनन्त र सुकेतु ने कृपाचार्य को पहले नौ बाणों से बींधकर फिर तिहत्तर तीरों से उन्हेंर घायल कर दिया । आर्य। तत्पबश्चात् बाणसहित उनके धनुष को काट दिया और एक बाण द्वारा उनके सारथि के मर्मस्थाुनों में गहरी चोट पहुंचायी । इससे कृपाचार्य अत्यदन्ता कुपित हो उठे। उन्होंमने दूसरा नूतन सुदृढ़ धनुष लेकर सुकेतु के सम्पूकर्ण मर्मस्थाउनों में तीस बाणों द्वारा प्रहार किया । इससे सुकेतु का सारा शरीर विह्रल होकर उस उत्तम रथ पर कांपने लगा; मानो भूकम्पप आने पर कोई वृक्ष जोर जोर से कांपने और झूमने लगा हो ।उसी अवस्थाा में कृपाचार्य ने एक क्षुरप्रद्वारा सुकेतु के जगमगाते हुए कुण्डगलों से युक्त पगड़ी और शिरस्त्रा णसहित मस्त क को उसकी कांपती हुई काया से काट गिराया ।
राजन्। वह सिर बाज के लाये हुए मांस के टुकड़े के समान पृथ्वीे पर गिर पड़ा। उसके बाद सुकेतु का धड़ भी धराशायी हो गया । महाराज। सुकेतु के मारे जाने पर उसके अग्रगामी सैनिक भयभीत हो समरागण में कृपाचार्य को छोड़कर दसों दिशाओं की ओर भाग निकले । भारत। दूसरी और महारथी कृतवर्मा ने समरागण में धृष्टद्युम्र को रोककर बड़े हर्ष के साथ कहा-‘खड़ा रह, खड़ा रह । नरेश्वर। जैसे मांस के टुकड़े के लिये दो बाज क्रोधपूर्वक लड़ रहे हों, उसी प्रकार उस रणक्षैत्र में कृतवर्मा और धृष्टेद्युम्नज घोर युद्ध होने लगा । धृष्टद्युम्न कुपित होकर कृतवर्मा को पीड़ा देते हुए उसकी छाती में नौ बाण मारे । धृष्ट द्युम्न। का गहरा आघात पाकर समर-भूमि में कृतवर्मा ने बाणों की वर्षा करके घोड़ों और रथ सहित धृष्टहद्युम्नन को आच्छाहदित कर दिया । राजन्। जैसे जल की धारा गिरने वाले मेघों से आच्छ्न्न हुए सूर्य का दर्शन नहीं होता, उसी प्रकार कृतवर्मा के बाणों से रथसहित आच्छारदित हुए धृष्टद्युम्न् दिखायी नहीं देते थे । महाराज। यद्यपि धृष्टद्युम्ने घायल हो गये थे तो भी अपने सुवर्ण-भुषित बाणों द्वारा कृतवर्मा के शरसमूह को छिन्न-भिन्न करके प्रकाशित होने लगे ।
फिर क्रोध में भरे हुए सेनापति धृष्टद्युम्नो ने कृतवर्मा के निकट जाकर उसके ऊपर अस्त्रो-शस्त्रों की भयंकर वर्षा आरम्भत कर दी ।अपने ऊपर सहसा आती हुई उस भयंकर बाणवर्षा को युद्धस्थेल में कृतवर्मा ने कई हजार बाण मारकर रोक दिया । रणभूमि में उस दुर्जय शस्त्र वर्षा को रोकी गयी देख धृष्टद्युम्ना ने कृतवर्मा पर आक्रमण करके उसे आगे बढ़ने से रोक दिया और उसके सारथि को तीखी धारवाले भल्ल से वेगपूर्वक मारकर यमलोक भेज दिया। मारा गया सारथि रथ से नीचे गिर पड़ा । कृतवर्मा अत्यान्तक क्रोध में भरकर जलाने को उद्यत हुई आग के समान धृष्टद्युम्न। गदा हाथ में लेकर पुन: बड़े वेग से महाधनुर्धर कृतवर्मा पर शीघ्र ही आघात किया । उस बलवान् वीर के गहरे आघात से अत्यलन्त् पीडित एवं मूर्छित हो कृतवर्मा गिर पड़ा। तब श्रुतर्वा उसे अपने रथ पर बिठाकर रणभूमि से दूर हटा ले गया । इस प्रकार बलवान् धृष्टद्युम्नत ने उस महाबली शत्रुको जीतकर बाणों की वर्षा करके समरागण में समस्तर कौरवों को तुरंत आगे बढ़ने से रोक दिया। तब आपके समस्ता योद्धा सिंहनाद करके धृष्टद्युम्नव पर टूट पड़े। फिर वहां घोर युद्ध होने लगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में संकुलयुद्ध विषयक चौवनवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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