महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 60 श्लोक 66-92

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षष्टितम (60) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: षष्टितम अध्याय: श्लोक 66-92 का हिन्दी अनुवाद

‘धनजय। ये वेगशाली पुरुषसिंह पाच्चाल योद्धा भीमसेन के बल का आश्रय लेकर मनुष्योंअ से रहित हाथियों, घोड़ों, रथों और वेगशाली धृतराष्ट्र-सैनिकों पर आक्रमण करते और उन्हें धूल में मिलाते जा रहे हैं । ‘शत्रुदमन वीर। दुर्जय पाच्चाल सैनिक प्राणों का मोह छोड़कर शत्रुओं की सेना को नष्ट। करते हुए गरजते और शंख बजाते हैं। ‘अर्जुन । देखो, इन वीरों की कैसी महिमा है जैसे क्रोध में भरे सिंह हाथियों को मार डालते हैं, उसी प्रकार ये पाच्चाल योद्धा पराक्रम करके अपने बाणों द्वारा शत्रुओं को रौदते हुए रणभूमि सब ओर दौड़ रहे हैं। ‘वे स्वायं अस्त्रौ-शस्त्रों से रहित होने पर भी आयुधधारी शत्रुओं के शस्त्र। छीनकर उसी से उन्हें मार डालते और गर्जना करते हैं; उनके अस्त्रों का निशाना कभी खाली नहीं जाता। ‘ये शत्रुओं के मस्तरक, भुजाएं, रथ, हाथी, घोड़े और समस्त यशस्वीं वीर धरती पर गिराये जा रहे हैं। ‘जैसे वेगशाली हंस मानसरोवर से निकलकर गंगाजी पर सब ओर से छा जाते हैं, उसी प्रकार पाच्चाल-सैनिकों द्वारा दुर्योधन की यह विशाल सेना चारों ओर से आक्रान्तज हो रही है। ‘कृपाचार्य और कर्ण आदि वीर इन पाच्चालों को रोकने के लिये अत्य न्त् पराक्रम दिखा रहे हैं। ठीक उसी तरह, जैसे सांड़ दूसरे सांड़ों को दबाने की चेष्टा करते हैं। ‘भीमसेन के बाणों से हतोत्साहह होकर भागने वाले कौरव महारथियों तथा सहस्त्रों को धृष्टद्युम्न आदि वीर मार रहे हैं। ‘शत्रुओं द्वारा पाच्चालों के पराजित होने पर वायुपुत्र भीमसेन निर्भय गर्जना करते हुए शत्रुदल पर आक्रमण करके बाणों की वर्षा कर रहे हैं। ‘दुर्योधन की विशाल सेना के अधिकांश वीर अत्य न्तर खिन्न हो उठे हैं और ये रथी भीमसेन के भय से पीडित हो संत्रस्तु हो गये हैं। ‘देखो, इन्द्रव वज्र के आहत होकर गिरने वाले पर्वत शिखरों के समान ये बड़े-बड़े हाथी भीमसेन के चलाये हुए नाराचों से विदीर्ण होकर पृथ्वीर पर गिर रहे हैं। ‘भीमसेन के झुकी हुई गांठवाले बाणों से अत्यान्त घायल हुए ये विशालकाय हाथी अपनी सेनाओं को कुचलते हुए भागते हैं। ‘ये भीमसेन के भय से पीडित हुए कौरव-योद्धा अपने सहस्त्रों हाथियों, रथों और घोड़ों, रथ और पैदलों का वह आर्तनाद तथा कौरवों को खदेड़ते हुए भीमसेन की यह गर्जना सुन लो। ‘अर्जुन। विजय श्री से सुशोभित हो गर्जना करने वाले वीर भीमसेन का संग्राम में जो अत्य।न्तअ दु:सह सिंहनाद हो रहा है,
उसे पहचानो। ‘यह निषादपुत्र श्रेष्ठर गजराज पर आरुढ़ हो तोमरों द्वारा भीमसेन को मार डालने की इच्छाे से क्रोध में भरे हुए दण्डयपाणि यमराज के समान उन पर आक्रमण कर रहा है। ‘देखो, भीमसेन ने गरजते हुए निषादपुत्र की तोमरसहित दोनों भुजाओं को काट दिया और अग्नि एवं सूर्य के समान तेजस्वीभ दस तीखे नाराचों द्वारा उसे मार डाला। ‘इस निषादपुत्र का वध करके वे पुन: प्रहार करने वाले दूसरे-दूसरे हाथियों पर आक्रमण कर रहे हैं। देखो, भीमसेन शक्ति और तोमरों के समूहों से काले मेघों की घटा के समान हाथियों को, जिनके कंधों पर महावत बैठे हैं, मार रहे हैं। ‘पार्थ। तुम्हािरे बड़े भाई भीमसेन ने अपने पैने बाणों से ध्वजसहित वैजयन्तीर पताकाओं को नष्टे करके उनचास हाथियों को काट गिराया है। ‘उन्होंने दस-दस नाराचों से एक-एक हा‍थी का वध किया है। भरत भूषण इन्द्र के समान पराक्रमी भीमसेन के क्रोधपूर्वक लौटने पर धृतराष्ट्रपुत्रों का वह सिंहनाद अब नहीं सुनायी दे रहा है। ‘कुपित हुए पुरुषसिंह भीमसेन दुर्योधन की संगठित हुई तीन अक्षौहिणी सेनाओं को आगे बढ़ने से रोक दिया है। ‘जैसे दुर्बल नेत्रोंवाले प्राणी दोपहर के सूर्य की ओर नहीं देख सकते, उसी प्रकार राजा लोग कुन्ती कुमार भीमसेन की ओर आंख उठाकर देख नहीं पा रहे हैं। ‘जैसे सिंह से डरे हुए दूसरे मृग चैन नहीं पाते हैं, उसी प्रकार ये भीमसेन के बाणों से भयभीत हुए कौरव सैनिक युद्ध स्थल में कहीं सुख नहीं पा रहे हैं। ‘पाण्ड्व-सैनिक क्रोध में भरकर महाबाहु दुर्योधन को पीड़ा दे रहे हैं। बलशाली राधापुत्र कर्ण भीमसेन को छोड़कर बगल में धनुष लिये महाराज दुर्योधन की रक्षा के लिये बहुतेरे सैनिकों के साथ वेगपूर्वक उसके पास जा रहा है । संजय कहते है- राजन्। वसुदेवनन्द न भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से यह सब सुनकर और भीमसेन के द्वारा किये हुए उस अत्य न्तस दुष्कोर कर्म को अपनी आंखों देखकर महाबाहु अर्जुन ने अपने पैने बाणों द्वारा शेष शत्रुओं को मार भगाया। प्रभो। समरागण में मारे जाते हुए महाबली संशप्तदकगण हतोत्साह एवं भयभीत हो दसों दिशाओं में भाग गये और कितने ही वीर इन्द्र के‍ अतिथि बनकर तत्काभल शोक से छुटकारा पा गये। पुरुषसिंह पार्थ ने झुकी हुई गांठवाले बाणों द्वारा दुर्योधन की चतुरडिगणी सेना का संहार कर डाला।

इस प्रकार श्री महाभारत कर्ण पर्व में श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद विषयक साठवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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