महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 14 भाग-3
चतुर्दश (14) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अश्वमेध पर्व)
उस समय के बैल अच्छी चाल-ढाल वाले, हृष्ट-पुष्ट, अच्छे स्वभाव वाले और सुख की प्राप्ति कराने वाले होते थे। उन दिनों शब्द और स्पर्श नामक विषय अत्यन्त मधुर होते थे। रस बहुत ही सुखद जान पड़ता था, रूप दर्शनीय एवं रमणीय प्रतीत होता था और गन्ध नामक विषय भी मनोरम जान पड़ता था।सबका मन धर्म, अर्थ और काम में संलग्र, मोक्ष और अभ्युदय के साधन में तत्पर, आनन्दजनक और पवित्र होता था।स्थावर (वृक्ष) बहुत से फूलों से सुशोभित तथा फल और छाया देने वाले होते थे। उनका स्पर्श सुखद जान पड़ता था और वे विष से हीन तथा सुन्दर पत्र, छाल और अंकुर से युक्त होते थे।सबकी चेष्टाएँ मन के अनुकूल होती थीं। पृथ्वी पर किसी प्रकार का संताप नहीं होता था। राजर्षि युधिष्ठर स्वयं जैसे आचार-विचार से युक्त थे, उसी का भूतल पर प्रसार हुआ था।समस्त पाण्डव सम्पूर्ण शुभ लक्षणों से सम्पन्न,धर्माचारण करने वाले और बड़े भाई की आज्ञा के अधीन रहने वाले थे। उनका दर्शन सभी को प्रिय था।उनकी छाती सिंह के समान चौड़ी थी। वे क्रोध पर विजय पाने वाले और तेज एवं बल से सम्पन्न थे। उन सबकी भुजाएँ घुटनों तक लंबी थी। वे सभी दानशील एवं जितेन्द्रिय थे।पाण्डव जब इस पृथ्वी का शासन कर रहे थे, उस समय सभी ऋतुएँ अपने गुणों से सुशोभित होती थीं। ताराओं सहित समस्त ग्रह सब के लिये सुखद हो गये थे।पृथ्वी पर खेती की उपज बढ़ गयी थी। सभी रत्न और गुण प्रकट हो गये थे। कामधेनु के समान वह सहस्त्रों प्रकार के भोगरूप फल देती थी।।पूर्वकाल मेें मनु आदि राजर्षियों ने मनुष्यों में जो मर्यादाएँ स्थापित की थीं, उन सबका तथा कुलोचित सदाचारों का उल्लंघन न करते हुए भूमण्डल के सभी राजा अपने-अपने राज्य का शासन करते थे। इस प्रकार सभी भूपाल धर्मपुत्र युधिष्ठर का प्रिय करने वाले थे।।धर्मिष्इ राजा श्रेष्ठ कुलों को विशेष प्रोत्साहन देते थे। वे मनु की बनायी हुई राजनीति के अनुसार इस वसुधा का शासन करते थे।तात्! इस पृथ्वी पर राजाओं के बर्ताव सदा धर्मानुकूल होते थे। प्राय: लोगों की बुद्धि राजा के ही बर्ताव का अनुसरण करने वाली होती है।जैसे इन्द्र स्वर्ग का शासन करते थे, उसी प्रकार गाण्डीवधारी अर्जुन से सुरक्षित राजा युधिष्ठर भगवान् श्रीकृष्ण के सहयोग से अपने राज्य -भारतवर्ष का शासन करते थे।
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