महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 13 श्लोक 23-37

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त्रयोदश (13) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: त्रयोदश अध्याय: श्लोक 23-37 का हिन्दी अनुवाद

शूरवीर अनुविन्द को मारा गया देख उसके महारथी भाई विन्द ने अपने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर सात्यकि को चारों ओर से रोका। उसने शिलापर तेज किये गये सुवर्ण पंख युक्त साठ बाणों द्वारा सात्यकि को घायल करके बड़े जोर की गर्जना की और कहा- ‘खड़ा रह, खड़ा रह ‘। तदनन्तर केकय महारथी विन्द ने तुरन्त ही सात्यकि की दोनों भुजाओं और छाती में कई हजार बाण मारे। राजन् ! उन बाणें से समरांगण में सत्यपराक्रमी सात्यकि के सारे अंग क्षत-विक्षत हो लहुलुहान हो गये और वे खिले हुए पलाश के समान सुशोभित होने लगे। महामना कैकय ( विन्द ) के द्वारा समरांगण में घायल हुए सात्यकि ने हँसते हुए ने पचीस बाण मारकर कैकय को भी घायल कर दिया। उन दोनों महारथियों ने युद्धस्थल में एक दूसरे के सुन्दर धनुष काटकर तुरंत ही सारथि और घोड़े भी मार डाले। फिर वे सुन्दर भुजाओं वाले दोनों वीर रथहीन होकर सौ चन्द्राकार चिन्हों से युक्त ढाल और तलवार लिये खंग युद्ध के लिये उद्यत हो युद्धस्थल में एक दूसरे के सामने आये। जैसे देवासुर-संग्राम महाबली इन्द्र और जम्भासुर शोभा पाते थे, उसी प्रकार युद्ध के उस महान् रंगस्थल में उत्तम खड्ग धारण किये हुए वे दोनों योद्धा सुशोभित हो रहे थे। उस महासागर में मण्डलाकार विचरते और पैंतरे दिखाते हुए वे दोनों वीर तुरंत ही एक दूसरे के समीप आ गये। फिर वे एक दूसरे के वध के लिए भारी यत्न करने लगे। तदनन्तर सात्यकि ने विन्द की ढाल के दो टुकड़े कर दिये। इसी प्रकार राजकुमार विन्द ने भी सत्यकि की ढाल टूक-टूक कर दी। सैंकड़ों तारक-चिन्‍होंसे भरी हुई सात्यकि की ढाल काटकर विन्द गत और प्रत्यागत आदि पैंतरे बदलने लगा। युद्ध में उस महान् रंगस्थल में श्रेष्ठ-खंग धारण करके विचरते हुए विन्द को सात्यकि ने तिरछे हाथ से शीघ्रतापूर्वक काट डाला। राजन् ! इस प्रकार महायुद्ध में दो टुकड़ों में कटा हुआ कवचसहित महाधनुर्घर केकयराज वज्र के मारे हुए पर्वत के समान गिर पड़ा। रथियों में श्रेष्ठ शत्रुदमन रणशूर सात्यकि विनद का वध करके तुरंत् ही युधमन्यु के रथ पर चढ़ गये। तत्पश्चात् विधिपूर्वक सजाकर लाये हुए दूसरे रथपर आरूढ़ हो सात्यकि अपने बाणों द्वारा केकयों की विशाल सेना का संहार करने लगे। समरभूमि में मारी जाती हुई केकयों की वह विशाल सेना रण में शत्रु को त्यागकर दसों दिशाओं में भाग गई।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में विन्द और अनुविन्द का वधविषयक तेरहवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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