महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 75 श्लोक 1-13
पंचसप्ततितम (75) अध्याय: कर्ण पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
दोनों पक्षों की सेनाओं में द्वन्द्व युद्ध तथा सुषेण का वध
धृतराष्ट्र ने पूछा – तात संजय ! मेरे पुत्रों तथा पाण्डवों और सृंजयों में पहले से ही अभाव एवं महाभयंकर संग्राम छिड़ा हुआ था । फिर जब धनंजय भी वहाँ कर्ण के साथ युद्ध के लिये जा पहुँचे, तब उस युद्ध का स्वरूप कैसा हो गया ? संजय कहते हैं – महाराज ! ग्रीष्म ऋतु बीत जाने पर जैसे मेघ समूह गर्जना करने लगते हैं, उसी प्रकार दोनो पक्षों की सेनाएँ एकत्र हो रणभूमि में गर्जना करने लगी । उनके भीतर बड़े-बड़े ध्वज फहरा रहे थे और सभी सैनिक अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न थे । रणभेरियों की ध्वनि उन्हें युद्ध के लिये उत्सुक किये हुए थी। क्रमश: वह क्रूरतापूर्ण युद्ध बिना ऋतु की अनिष्टकारी वर्षा के समान प्रजाजनों का संहार करने लगा । बडे़-बडे़ हाथियों का समूह मेघों की घटा बनकर वहाँ छाया हुआ था । अस्त्र ही जल थे, वाद्यों और पहियों की घर्घराहट का शब्द ही मेघ-गर्जन के समान प्रतीत होता था । सुवर्णजटित विचित्र आयुध विद्युत् के समान प्रकाशित होते थे । बाण, खडग और नाराच आदि बड़े-बडे़ अस्त्रों की धारावाहिक वृष्टि हो रही थी । धीरे-धीरे उस युद्ध का वेग बड़ा भयंकर हो उठा, रक्त का स्त्रोत बह चला । तलवारों की खचाखच मार होने लगी, जिससे क्षत्रियों के प्राणों का संहार होने लगा। बहुत से रथी एक साथ मिलकर किसी एक रथी को घेर लेते और उसे यमलोक पहुँचा देते थे ।
इसी प्रकार एक रथी एक रथी को और अनेक श्रेष्ठ रथियों को भी यमलोक का पथिक बना देता था। किसी रथी ने किसी एक रथी को घोड़ों और सारथि सहित मौत के हवाले कर दिया तथा किसी दूसरे वीर ने एकमात्र हाथी के द्वारा बहुत से रथियों और घोड़ों को मौत का ग्रास बना दिया। उस समय अर्जुन ने सारथि सहित रथों, घोड़ों सहित हाथियों, समस्त शत्रुओं, सवारों सहित घोड़ों तथा पैदल समूहों को भी अपने बाण समूहों द्वारा मृत्यु के अधीन कर दिया। उस रणभूमि में कृपाचार्य और शिखण्डी एक दूसरे से भिड़े थे, सात्यकि ने दुर्योधन पर धावा किया था, श्रुतश्रवा द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के साथ जूझ रहा था और युधामन्यु चित्रसेन के साथ युद्ध कर रहे थे। सृंजयवंशी रथी उत्तमौजाने अपने सामने आये हुए कर्णपुत्र सुषेण पर आक्रमण किया था । जैसे भूख से पीडित हुआ सिंह किसी साँड पर धावा करता है, उसी प्रकार सहदेव गान्धारराज शकुनि पर टूट पड़े थे।
नकुलपुत्र नवयुवक शतानीक ने कर्ण के नौजवान बेटे वृषसेन को अपने बाण समूहों से घायल कर दिया तथा शूरवीर कर्णपुत्र वृषसेन ने भी अनेक बाणों की वर्षा करके पांचाली कुमार शतानीक को गहरी चोट पहुँचायी। विचित्र युद्ध करने वाले, रथियों में श्रेष्ठ माद्रीकुमार नकुल ने कृतवर्मा पर चढ़ाई की । द्रुपद कुमार पांचालराज सेनापति धृष्टद्युम्न ने सेना सहित कर्ण पर आक्रमण किया। भारत ! दु:शासन, कौरव सेना और संशप्त की समृद्धि शालिनी वाहिनी ने असह्य वेगशाली, शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ तथा युद्ध में भयंकर प्रतीत होने वाले भीमसेन पर चढ़ाई की। वीर उत्तमौजा ने हठपूर्वक वहाँ कर्णपुत्र सुषेण पर घातक प्रहार किया और उसका मस्तक काट डाला । सुषेण का वह मस्तक अपने आर्तनाद से आकश और प्रतिध्वनित करता हुआ भूमि पर गिर पड़ा।
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