महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 64 श्लोक 1-20

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चतु:षष्टितम (63) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व:चतु:षष्टितमअध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन द्वारा अश्वत्‍थामा की पराजय, कौरव सेना में भगदड़ एवं दुर्योधन से प्रेरित कर्ण द्वारा भार्गवास्‍त्र से पाच्चालों का संहार संजय कहते है- राजन्। द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा विशालरथ सेना से घिरा सहसा वहां आ पहुंचा, जहां अर्जुन खड़े थे । भगवान् श्रीकृष्‍ण जिनके सहायक थे, उन शूरवीर कुन्तिकुमार अर्जुन ने सहसा अपनी ओर आते हुए अश्वत्‍थामा को तत्‍काल उसी तरह रोक दिया, जैसे तटभूमि समुद्र को आगे बढ़ने से रोकती है । महाराज। तब क्रोध में भरे हुए प्रतापी द्रोणपुत्र ने अर्जुन और श्रीकृष्‍ण को अपने बाणों से ढक दिया । उस समय उन दोनों को बाणों द्वारा आच्‍छादित हुआ देख समस्‍त कौरव महारथी महान् आश्चर्य में पड़कर उधर ही देखने लगे । भारत। तब अर्जुन ने हंसते हुए से दिव्‍यास्‍त्र प्रकट किया; परंतु ब्राह्मण अश्वत्‍थामा ने युद्धस्‍थल में उनके उस दिव्‍यास्‍त्र का निवारण कर दिया । रणभूमि में पाण्‍डुकुमार अर्जुन अश्वत्‍थामा के अस्‍त्रों को नष्‍ट करने के‍ लिये जो-जो अस्‍त्र चलाते थे, महाधनुर्धर द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा उनके उस-उस अस्‍त्र को काट गिराता था ।राजन्। इस प्रकार महाभयंकर अस्‍त्र-युद्ध आरम्‍भ होने पर हम लोगों ने रणक्षैत्र में द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा को मुंह बाये हुए यमराज के समान देखा था । उसने सीधे जाने वाले बाणों के द्वारा सम्‍पूर्ण दिशाओं और कोणों को आच्‍छादित करके श्रीकृष्‍ण की दाहिनी भुजा में तीन बाण मारे । तब अर्जुन ने उस महामनस्‍वी वीर के समस्‍त घोड़ों को मारकर समरभूमि में खून की नदी-सी बहा दी । वह रक्तमयी भयंकर सरिता परलोकवाहिनी थी और सब लोगों को अपने प्रवाह में बहाये लिये जाती थी। वहां खड़े हुए सब लोगों ने देखा कि अश्वत्‍थामा के सारे रथी अर्जुन के धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा युद्ध भूमि में मारे गये। स्‍वयं अश्वत्‍थामा ने भी उनकी वह अवस्‍था देखी। उस समय उसने भी महाभयंकर परलोकवाहिनी नदी बहा दी । अश्वत्‍थामा और अर्जुन के उस भयंकर एवं घमासान युद्ध में सब योद्धा मर्यादारहित होकर युद्ध करते हुए आगे पीछे सब ओर भागने लगे । रथों के घोड़े और सारथि मार दिये गये। घोड़ों के सवार नष्ट हो गये। गजारोही मार डाले गये और हाथी बचे रहे एवं कहीं हाथी ही मार डाले गये तथा महावत बचे रहे। राजन्। इस प्रकार समरागण में अर्जुन ने घोर जनसंहार मचा दिया। उनके धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा मारे जाकर बहुत से रथी धराशायी हो गये ।घोड़ों के बन्‍धन खुल गये और वे चारों ओर दौड़ लगाने लगे। युद्ध में शोभा पाने वाले अर्जुन का वह पराक्रम देखकर पराक्रमी द्रोणकुमार अश्वत्‍थामा तुरंत उनके पास आ गया और अपने सुवर्णभूषित विशाल धनुष को हिलाते हुए उसने विजयी वीरों में श्रेष्‍ठ अर्जुन को पैने बाणों द्वारा सब ओर से ढक दिया । महाराज। तदनन्‍तर द्रोणकुमार ने धनुष खींचकर छोड़े हुए पंखयुक्त बाण से कुन्‍तीकुमार अर्जुन की छाती पर पुन: बड़े जोर से निर्दयतापूर्वक प्रहार किया भारत। रणभूमि में द्रोणपुत्र के द्वारा अत्‍यन्‍त घायल किये गये उदारबुद्धि गाण्‍डीवधारी अर्जुन ने समरागण में बलपूर्वक बाणों की वर्षा करके अश्‍वत्‍थामा को ढक दिया और उसके धनुष को भी काट डाला । धनुष कट जाने पर द्रोणपुत्र ने युद्धस्‍थल में एक ऐसा परिघ हाथ में लिया, जिसका स्‍पर्श वज्र के समान कठोर था। उसने उस परिघ को तत्‍काल ही किरीटधारी अर्जुन पर दे मारा ।





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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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