महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 78 श्लोक 23-44

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अष्टसप्ततितम (78) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: अष्टसप्ततितम अध्याय: श्लोक 23-44 का हिन्दी अनुवाद

आर्य ! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए कर्ण ने भीम सेन को तीस बाणों से घायल किया और एक भाल से सहदेव की ध्वजा काट डाली। इतना ही नहीं, शत्रुओं को संताप देने वाले कर्ण ने तीन बाणों से सहदेव के सारथि को भी मार डाला औेर पलक मारते-मारते द्रौपदी के पुत्रों को रथहीन कर दिया ! भरत श्रेष्ठ ! वह अद्भुत-सा कार्य हुआ। उसने झुकी हुई गाँठवाले बाणों से उन समस्त वीरों को युद्ध से विमुख करके पांचाल वीरों और चेदि-देशीय महारथियों को मारना आरम्भ किया। प्रजानाथ ! समर में घायल होते हुए भी चेदि औेर मत्स्य देश के वीरों ने एकमात्र कर्ण पर धावा करके उसे बाण-समूहों से ढक दिया। महारथी सूत पुत्र ने पैने बाणों से उन सब को घायल कर दिया । प्रजानाथ ! समर में मारे जाते हुए चेदि और मत्स्य देश के वीर सिंह से डरे हुए मृगों के समान रणभूमि में कर्ण से भयभीत होकर भागने लगे। भारत ! महाराज ! यह अद्भुत पराक्रम मैनें अपनी आँखों देखा था कि अकेले प्रतापी सूतपुत्र ने समरांगण में पूरी शक्ति लगाकर प्रयत्नपूर्वक युद्ध करने वाले पाण्डव पक्षीय धनुर्धर वीरों को अपने बाणों द्वारा रणभूमि में आगे बढने से रोक दिया।
भरतनन्दन ! वहाँ महामनस्वी कर्ण की फुर्ती देखकर चारणों सहित सिद्धगण और सम्पूर्ण देवता बहुत संतुष्ट हुए। धृतराष्ट्र के महाधनुर्धर पुत्र सम्पूर्ण धनुर्धरों तथा रथियों में श्रेष्ठ नरोत्तम कर्ण की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। महाराज जैसे ग्रीष्म ऋतु में अत्यन्त प्रज्वलित हुई आग सूखे काठ एवं घास-फूस को जला देती है, उसी प्रकार कर्ण शत्रुसेना को दग्ध करने लगा। कर्ण के द्वारा मारे जाते हुए पाण्डव सैनिक रणभूमि में उस महारथी वीरो देखते ही भयभीत हो जहाँ-तहाँ से भागने लगे । कर्ण के धनुष से छूटे हुए तीखे बाणों द्वारा मारे जाने वाले पांचालों का महान् आर्तनाद उस महासमर में गूँजने लगा। उस घोर शब्द से पाण्डवों की विशाल सेना भयभीत हो उठी । शत्रुओं के सभी सैनिक रणभूमि में एकमात्र कर्ण को ही सर्वश्रेष्ठ योद्धा मानने लगे। शत्रुसूदन गधापुत्र ने पुनः वहाँ अद्भुत पराक्रम प्रकट किया, जिससे समस्त पाण्ड़व-योद्धा उसकी ओर आँख उठाकर देख भी नहीं सके। जैसे जल का महान् प्रवाह किसी ऊँचे पर्वत टकराकर कई धाराओं में बँट जाता है, उसी प्रकार पाण्डव सेना कर्ण के पास पहुँचकर तितर-बितर हो जाती थी।।
राजन् ! समरांगण में धूमरहित अग्नि के समान प्रज्वलित होने वाला महाबाहु कर्ण भी पाण्डवों की विशाल सेना को दग्ध करता हुआ स्थिर भाव से खडा रहा। महाराज ! वीर कर्ण ने बाणों द्वारा पाण्डव-पक्ष के वीरों के मस्तक, कुण्डल सहित कान तथा भुजाएँ शीध्रतापूर्वक काट डाली। राजन् ! योद्धाओं के व्रत का पालन करने वाले कर्ण ने हाथी-दाँत की बनी हुई मूँठवाले खंगो, ध्वजों, शक्तियों, हाथियों, नाना प्रकार के रथों, पताकाओं, व्यजनों, धुरों, जूओं, जोतों, और भाँति-भँाति के पहियों के टुकडे़-टुकडे़ कर डाले। भारत ! वहाँ कर्ण द्वारा मारे गये हाथियों और घोडों की लाशों से पृथ्वी पर चलना असम्भव हो गया । रक्त औेर मांस की कीच जम गयी। मरे हुए घोडों, पैदलों, रथों और हाथियों से पट जाने के कारण वहाँ की ऊँची-नीची भूमि का कुछ पता नहीं लगता था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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