महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 66 श्लोक 37-48

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षट्षष्टितम (66) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व:षट्षष्टितमअध्याय: श्लोक 37-48 का हिन्दी अनुवाद


इन्‍द्रकुमार। उस मन्‍दबुद्धि कर्ण ने सदा के लिये यह व्रत ले रखा था कि जब तक कुन्‍तीकुमार अर्जुन जीवित हैं, तब तक मैं दूसरों से पैर नहीं धुलाऊंगा। क्‍या उस कर्ण को तुमने आज मार डाला । जिस दुष्टबुद्धिवाले कर्ण ने कौरव-वीरों के बीच भरी सभा में द्रौपदी से कहा था कि ‘कृष्‍णे। तू इन अत्‍यन्‍त दुर्बल, पतित और शक्तिहीन पाण्‍डवों को छोड़ क्‍यों नहीं देती । ‘जिस कर्ण ने तुम्‍हारे लिये यह प्रतिज्ञा की थी कि ‘आज मैं श्रीकृष्‍ण सहित अर्जुन को मारे बिना यहां नहीं लौटूंगा’ क्‍या वह पापात्‍मा तुम्‍हारे बाणों से छिन्न-भिन्न होकर धरती पर पड़ा है । क्‍या तुम्‍हें आज के संघर्ष में सृंजयों और कौरवों का जो यह संग्राम हुआ था, उसका समाचार ज्ञात हुआ है, जिसमें मैं ऐसी दुर्दशाको पहुंचा दिया गया। क्‍या तुमने आज उस दुरात्‍मा कर्ण को मार डाला । सव्‍यसाची अर्जुन। क्‍या तुमने युद्धस्‍थल में गाण्‍डीव धनुष से छोड़े गये प्रज्‍वलित बाणों द्वारा उस मन्‍दबुद्धि कर्ण के कुण्‍डमण्डित तेजस्‍वी मस्‍तक को धड़ से काट गिराया । वीर। जिस समय मैं बाणों से घायल कर दिया गया, उस समय कर्ण के वध के लिये मैंने तुम्‍हारा चिन्‍तन किया था। क्‍या तुमने कर्ण को धराशायी करके मेरे उस चिन्‍तन को आज सफल बना दिया । कर्ण का आश्रय लेकर दुर्योधन जो बड़े घमंड में भरकर हमलोगों की ओर देखा करता था। क्‍या तुमने दुर्योधन के उस महान् आश्रय को आज पराक्रम करके नष्‍ट कर दिया । जिसने पूर्वकाल में सभा-भवन के भीतर कौरवों की आंखों के सामने हमें थोथे तिलों के समान नपुंसक बताया था वह अमर्षशील दुर्बुद्धि सूतपुत्र क्‍या आज युद्ध में आकर तुम्‍हारे हाथ से मारा गया । जिस दुरात्‍मा सूतपुत्र कर्ण ने हंसते-हंसते पहले दु:शासन से यह बात कही थी कि ‘सुबलपुत्र के द्वारा जीती हुई द्रुपद कुमारी को तुम स्‍वयं जाकर बलपूर्वक यहां ले आओ, क्‍या तुमने आज उसे मार डाला । महात्‍मन्। जो पृथ्‍वी पर समस्‍त शस्‍त्रधारियों में श्रेष्‍ठतम समझा जाता था जिस मूर्ख ने अर्धरथी गिना जाने पर पितामह भीष्‍म के ऊपर महान् आक्षेप किया था, उस अधि रथपुत्र को क्‍या तुमने आज मार डाला । फाल्‍गुन। मेरे ह्रदय में जिस कर्ण की शठतारुपी वायु से प्रेरित हो अमर्ष आग सदा प्रज्‍वलित रहती है ‘उस कर्ण को आज युद्ध में पाकर मैंने मार डाला’ ऐसा कहते हुए क्‍या तुम आज मेरी उस आग को बुझा दोगे । बोलो, मेरे लिये यह समाचार अत्‍यन्‍त दुर्लभ है। वीरवर। तुमने सूतपुत्र को कैसे मारा मैं वृत्रासुर के मारे जाने पर भगवान् इन्‍द्र के समान सदा तुम्‍हारे विजयी स्‍वरुप का चिन्‍तन करता हूं ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्ण पर्व में युधिष्ठिरवाक्‍य विषयक छाछठवां अध्‍याय पूरा हुआ ।







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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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