महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 59 श्लोक 37-55

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एकोनषष्ठि (59) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनषष्ठि अध्याय: श्लोक 37-55 का हिन्दी अनुवाद

मनुष्य, हाथी और घोडे़ सभी बाणों से छिद गये थे। रथ के ध्वज ओर कुबर टूटकर गिर चुके थे। इस प्रकार पाण्‍डवों की सेना अचेत-सी होकर हाहाकार कर रही थी ।इस युद्ध में दैव के वशीभूत होकर पिता ने पुत्र को, पुत्र ने पिता को और मित्र ने प्रिय मित्र को मार डाला । भारत! पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर के बहुत से सैनिक कवच खोलकर बाल बिखेरे इधर-उधर दौड़ते दिखायी देते थे ।उस समय पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर की वह सेना व्याकुल होकर भटकती हुई गौओं के समूह की भांति आतस्वर से हाहाकार करती हुई देखी गयी। कितने ही रथयुथपति भी किकर्तव्यविमुढ़ होकर घूम रहे थे। अपनी सेना में इस प्रकार भगदड़ मची हुई देख यदुकुलनन्दन भगवान् श्रीकृष्ण अपने उत्तम रथ को खडा करके कुन्तीपुत्र अर्जुन से कहा । ‘पुरूष सिंह ! जिसकी तुम दीर्घकाल से अभिलाषा करते थे, वही यह अवसर प्राप्त हुआ है। यदि तुम मोह से कि कर्तव्य-विमुढ नहीं हो गये हो तो पूरी शक्ति लगाकर युद्ध करो।। ‘वीर! जो पहले राजाओं की मण्डली मे तुमने जो यह कहा था कि ‘जो मेरे साथ संग्राम भूमि में उतरकर युद्ध करेंगे, दुर्योधन के उन भीष्म, द्रोण, आदि समस्त सैनिकों में सगे-सम्बन्धियों सहित मार डालूंगा।’ शत्रुसुदन कुन्तीनन्दन ! अपनी उस बात को सत्य कर दिखाओ । अर्जुन ! देखो, तुम्हारी सेना इधर उधर भाग रही है।
समरभूमि में मूंह बाये हुए काल के समान भीष्म को देखकर युधिष्ठिर सेना में भागते हुए उन राजाओं की और दृष्टिगत करो। ये सिंह से डरे हुए क्षृद्र मृगों की भांति भय से आतुर होकर पलायन कर रहे है’ ।वसुदेवनन्दन श्रीकष्ण के ऐसा कहने पर अर्जुन ने उन्‍हें इस प्रकार उत्तर दिया- ‘इन घोड़ों को हांककर वही ले चलिये; जहां भीष्म मौजूद है। इस सेनारूपी समुद्र में प्रवेश कीजिये। आज मै कुरूकुल के वृद्ध पितामह दुर्धर्ष वीर भीष्म को रथ से नीचे गिरा दॅूगा ।संजय कहते है- राजन् ! तब भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन के चांदी के समान सफेद घोड़ों को उसी दिशा की और हांका, जिस और भीष्म का रथ विघमान था। सूर्य की भांति उस रथ की और आंख उठाकर देखना भी कठिन था । उस समय महाबाहु अर्जुन को समरभूमि में भीष्म से लोहा लेने के लिये उद्यत देख युधिष्ठिर की वह विशाल सेना पुनः लौट आयी ।कुरूश्रेष्ठ ! तरनन्तर भीष्म सिंह से समान बारंबार गर्जना करते हुए अर्जुन के रथ पर शीघ्रतापूर्वक बाणों की वर्षा करने लगे । उस महान् बाण वर्षा से एक ही क्षण में घोडे़ और सारथि सहित आच्छादित होकर अर्जुन का रथ किसी की दृष्टि में नही आता था । परंतु शक्तिशाली भगवान् श्रीकृष्ण तनिक भी घबराहट में न पड़कर धैर्य का सहारा ले उन घोड़ों को हांकते रहे। यद्यपि भीष्म के बाण उन अश्वों के सभी अंगो में धॅसे हुए थे । तब अर्जुन ने मेघ के समान गम्भीर घोष करने वाले दिव्य धनुष को हाथ में लेकर तीन बाणों से भीष्म के धनुष को काट गिराया । धनुष कट जाने पर आपके ताऊ कुरूनन्दन भीष्म ने पलक मारते-मारते पुनः विशाल धनुष पर प्रत्यचा चढा दी ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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