महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 79 श्लोक 18-34

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एकोनाशीतितम (79) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 18-34 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण जिनके सारथि हैं, उन श्वेतावाहन अर्जुन को आते देख और उन महात्मा की ध्वजा पर दृष्टिपात करके मद्रराज शल्य ने कर्ण से कहा-‘कर्ण ! तुम जिसके विषय मैं पूछ रहे थे, वही यह श्वेत घोडों वाला रथ, जिसके सारथि श्रीकृष्ण है, समरांगण मैं शत्रुओं का संहार करता हुआ इधर ही आ रहा है। ये कुन्तीकुमार अर्जुन हाथ मैं गाण्डीव धनुष लिये हुए खडे़ हैं। यदि तुम आज उनको मार डालागे तो वह हम लोगों के लिये श्रेयस्कर होगा। कर्ण ! देखो, अर्जुन के धनुष की यह प्रत्यंचा तथा चन्द्रमा और तारों से चिन्हित यह रथ की पताका है, जिसमैं छोटी-छोटी घंटिया लगी हैं, वह आकाश मैं बिजली के समान चमक रही है। कुन्तीकुमार अर्जुन की ध्वजा के अग्रभाग मैं एक भयंकर वानर दिखायी देता है, जो सब और देखता हुआ कौरव वीरों का भय बढ़ा रहा है। पाण्डुपुत्र के रथपर बैठकर घोडे़ हांकते हुए भगवान् श्रीकृष्ण के ये चक्र, गदा, शंख तथा शांर्ड धनुष दष्टिगोचर हो रहे हैं। यह युद्ध से कभी पीछे नहीं हटते, उन राजाओं के कटे हुए मस्तकों से यह रणभूमि पटी जा रही है। उन मस्तकों के नेत्र बडे़-बडे़ और लाल हैं तथा मुख पूर्ण चन्द्रमा के समान मनोहर है।
रणवीरों की ये अस्त्र-शस्त्रों सहित उठी हुई भुजाएं, जो परिघों के समान मोटी तथा पवित्र सुगन्धयुक्त चन्दन से चर्चित हैं, काटकर गिरायी जा रही हैं। ये कौरवपक्ष के सवारों सहित घोडे़ क्षत-विक्षत हो, अर्जुन के द्वारा गिराये जा रहे हैं। इनकी जीभें और आंखें बाहर निकल आयी हैं। ये गिरकर पृथ्वी पर सो रहे हैं। ये हिमाचल प्रदेश के हाथी, जो पर्वत-शिखरों के समान जान पड़ते हैं, पर्वतों के समान धराशायी हो रहे हैं। अर्जुन ने इसके कुम्भस्थल काट डाले हैं। ये गन्धर्व-नगर के समान विशाल रथ हैं, जिनसे ये मारे गये राजालोग उसी प्रकार नीचे गिर रहे हैं, जैसे पुण्य समाप्त होने पर स्वर्गवासी प्राणी विमान से नीचे गिर जाते हैं।। किरीटधारी अर्जुन ने शत्रुसेना को उसी प्रकार अत्यन्त व्याकुल कर दिया है, जैसे सिंह नाना जाति के सहस्त्रों मृगों के झुंड को व्याकुल कर देता हैं। राधापुत्र कर्ण ! अर्जुन बड़े-बडे़ राथियों का संहार करते हुए तुम्हें ही प्राप्त करने के लिये इधर आ रहे हैं। ये शत्रुओं के लिये असह्य हैं। तुम इन भरतवंशी वीर का सामना करने करने के लिये आगे बढ़ो। कर्ण ! तुम दया और प्रमाद छोड़कर भृगुवंशी परशुरामजी के लिये हुए अस्त्र का स्मरण करो, उनके उपदेश के अनुसार लक्ष्य की ओर दृष्टि रखना, धनुष को अपनी मुट्ठी से दृढतापूर्वक पकडे़ रहना और बाणों का संधान करना आदि बातें याद करके मन मैं विजय पाने की इच्छा लिये महारथी अर्जुन का सामना करने के लिये आगे बढ़ो।। अर्जुन थोडी ही देर मैं बहुत-से शत्रुओं का संहार कर डालते हैं, इसलिये उनके भय से दुर्योधन की यह सेना चारों ओर से छिन्न-भिन्न होकर भागी जा रही है। इस समय अर्जुन का शरीर जैसा उत्तेजित हो रहा है उससे मैं समझता हूं कि वे सारी सेनाओं को छोडकर तुम्हारे पास पहुंचने के लिये जल्दी कर रहे हैं। भीमसेन के पीड़ित होने से अर्जुन क्रोध से तमतमा उठे हैं, इसलिये आज तुम्हारे सिवा और किसी से युद्ध करने के लिये वे नहीं रूक सकेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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