महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 79 श्लोक 35-51

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एकोनाशीतितम (79) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 35-51 का हिन्दी अनुवाद

तुमने धर्मराज युधिष्ठिर को अत्यन्त घायल करके रथहीन कर दिया है। शिखण्डी, द्रुपदकुमार धृष्टधुम्न, सात्यकि, द्रौपदी के पुत्रों, उत्तमौजा, युधामन्यु तथा दोनों भाई नकुल- सहदेव को भी तुम्हारे हाथों बहुत चोट पहुंची है। यह सब देखकर शत्रुओं को संताप देने वाले कुन्तीकुमार अर्जुन अत्यन्त कुपित-हो उठे हैं। उनके नेत्र रोष से रक्तवर्ण हो गये हैं, अतः वे समस्त राजाओं का संहार करने की इच्छा से एकमात्र रथ के साथ सहसा तुम्हारे ऊपर चढे़ आ रहे हैं। इसमें संदेह नहीं कि वे सारी सेनाओं को छोड़कर बड़ी उतावली के साथ हम लोगों पर टूट पडे़ है; अतः कर्ण ! अब तुम भी इनका सामना करने के लिये आगे बढ़ो, क्योंकि तुम्हारे सिवा दूसरा कोई धनुर्धर ऐसा करने मैं समर्थ नहीं है।। इस संसार में मैं तुम्हारे सिवा दूसरे किसी धनुर्धर को ऐसा नहीं देखता, जो समुद्र मैं उठे हुए ज्वार के समान समरांगण में कुपित हुए अर्जुन को रोक सके। मैं देखता हूं कि अलग-अलग से या पीछे की ओर से उनकी रक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं किया गया है। वे अकेले ही तुम पर चढ़ाई कर रहे हैं; अतः देखों, तुम्हें अपनी सफलता के लिये कैसा सुन्दर अवसर हाथ लगा है।
राधापुत्र ! रणभूमि मैं तुम्हीं श्रीकृष्ण और अर्जुन को परास्त करने की शक्ति रखते हो, तुम्हारे ऊपर ही यह भार रखा गया है; इसलिये तुम अर्जुन को रोकने के लिये आगे बढ़ो। तुम भीष्म, द्रोण, अश्वत्थामा तथा कृपाचार्य के समान पराक्रमी हो, अतः इस महासमर मैं आक्रमण करते हुए सव्यसाची अर्जुन को रोको। कर्ण ! जीभ लपलपाते हुए सर्प, गर्जते हुए सांड और वनवासी व्याघ्र के समान भयंकर अर्जुन का तुम वध करो। देखो ! समरभूमि मैं दुर्योधन की सेना के ये महारथी नरेश अर्जुन के भय से आत्मीयजनों की भी अपेक्षा न रखकर बड़ी उतावली के साथ भागे जा रहे हैं। सूतनन्दन ! इस युद्धस्थल मैं तुम्हारे सिवा ऐसा कोई भी वीर पुरूष नहीं है, जो उन भागते हुए नरेशों का भय दूर कर सके ।।45।। पुरूषसिंह ! इस समुद्र- जैसे युद्धस्थल मैं तुम द्वीप के समान हो। ये समस्त कौरव तुमसे शरण पाने की आशा रखकर, तुम्हारे ही आश्रम मैं आकर खड़े हुए हैं। राधानन्दन ! तुमने जिस धैर्य से पहले अत्यन्त दुर्जय विदेह, अग्बष्ठ, काम्बोज, नग्रजित् तथा गान्धारगणों को युद्ध में पराजित किया था, उसी को पुनः अपनाओ और पाण्डुपुत्र अर्जुन का सामना करने के लिये आगे बढ़ो।
महाबाहो ! तुम महान् पुरूषार्थ में स्थित होकर अर्जुन से सतत प्रसन्न रहने वाले वृष्णिवंशी, वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण का भी सामना करो। जैसे पूर्वकाल में तुमने अकेले ही सम्पूर्ण दिशाओं पर विजय पायी थी, इन्द्र की दी हुई शक्ति से भीमपुत्र घटोत्कच का वध किया था, उसी तरह इस सारे बल-पराक्रम आश्रय ले कुन्तीपुत्र अर्जुन को मार डालो ।। कर्ण ने कहा- शल्य ! इस समय तुम अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित हो और मुझसे सहमत जान पड़ते हो। महाबाहो ! तुम अर्जुन से डरो मत। आज मेंरी इन दोनों भुजाओं का बल देखो और मेंरी शिक्षा की शक्ति पर भी दृष्टिपात करो। आज में अकेला ही पाण्डवों की विशाल सेना का संहार कर डालूंगा। पुरूषसिंह ! में तुमसे सच्ची बात कहता हूं कि युद्धस्थल में उन दोनों वीर श्रीकृष्ण और अर्जुन का वध किये बिना में किसी तरह पीछे नहीं हटॅूगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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