महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 81 श्लोक 1-20

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एकाेेशीतितम (81) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकाेेशीतितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन और भीमसेन के द्वारा कौरव वीरों का संहार तथा कर्ण का पराक्रम

संजय कहते हैं- राजन् ! किन की ध्वजा में श्रेष्ठ कपि-का चिन्ह है, उन वीर अर्जुन को महावेगशाली अश्वों द्वारा आगे बढ़ते देख कौरव-दल के नब्बे वीर रथियों ने युद्ध के लिये धावा किया। उन नरव्याघ्र संशप्त वीरों ने परलोक सम्बन्धी घोर शंपथ खाकर पुरूषसिंह अर्जुन को रणभूमि में चारों ओर से घेर लिया। श्रीकृष्ण ने सोने के आभूषणों से विभूषित तथा मोती की जालियों से आच्छादित श्वेत रंग के महान् वेगशाली अश्वों को कर्ण के रथ की ओर बढ़ाया। तत्पश्चात् कर्ण के रथ की ओर जाते हुए शत्रुसूदन धनंजय को बाणों की वर्षा से घायल करते हुए संशप्तक रथियों ने उनपर आक्रमण कर दिया। सारथि, धनुष और ध्वजसहित उतावली के साथ आक्रमण करनेवाले उन सभी नब्बे वीरों को अर्जुन ने अपने पैने बाणों द्वारा मार गिराया। किरीटधारी अर्जुन ने चलाये हुए नाना प्रकार के बाणों से मारे जाकर वे संशक्त रथी पुण्यक्षय होने पर विमानसहित स्वर्ग से गिरनेवाले सिद्धों के समान रथ से नीचे गिर पडे़। तदनन्तर रथ, हाथी और घोड़ों सहित बहुत-से कौरव वीर निर्भय हो भरतभूषण कुरूश्रेष्ठ अर्जुन का सामना करने के लिये चढ़ आये।
आपके पुत्रों की उस विशाल सेना में मनुष्य और अश्व तो थक गये थे, परंतु बडे़-बडे़ हाथी उद्धत होकर आगे बढ़ रहे थे। उस सेना ने अर्जुन की गति रोक दी। उन महाधनुर्धर कौरवों ने कुरूकुलनन्दन अर्जुन को शक्ति, ऋष्टि, तोमर, प्रास, गदा, खग और बाणों के द्वारा ढक दिया। परन्तु जैसे सूर्य अपनी किरणों द्वारा अन्धकार को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार पाण्डुपुत्र अर्जुन ने आकाश में सब और फैली हुई उस बाणवर्षा को छिन्न-भिन्न कर डाला।। तब आपके पुत्र दुर्योधन की आज्ञा से म्लेच्छसैनिक तेरह सौ मतवाले हाथियों के साथ आ पहुंचे और पाश्र्वभाग में खडे़ हो अर्जुन को घायल करने लगे। उन्होंने रथपर बैठे हुए अर्जुन को कर्णी, नालीक, नाराच, तोमर, मुसल, प्रास, भिंदिपाल और शक्तियों द्वारा गहरी चोट पहुंचायी। हाथियों की सूंडों द्वारा की हुई उस अनुपम शस्त्रवर्षा को अर्जुन ने तीखे भल्लों तथा अर्धचन्द्रों से नष्ट कर दिया। फिर नाना प्रकार के चिन्ह वाले उत्तम बाणों द्वारा पताका, ध्वज और सवारों सहित उन सभी हाथियों को उसी तरह मार गिराया, जैसे इन्द्र ने वज्र के आघातों से पर्वतों को धराशायी कर दिया था। सोने के पंखवाले बाणों से पीड़ित हुए वे सुवर्णमालाधारी बडे़-बडे़ गजराज मारे जाकर आग की ज्वालाओं से युक्त पर्वतों के समान धरती पर गिर पडे़। प्रजानाथ ! तदनन्तर गाण्डीव धनुष की टंकारध्वनि बडे़ जोर-जोर से सुनायी देने लगी। साथ ही चिग्घाड़ ते और आर्तनाद करते हुए मनुष्यों, हाथियों तथा घोड़ों की आवाज भी वहां गूंज उठी। राजन् ! घायल हाथी सब ओर भागने लगे। जिनके सवार मार दिये गये थे, वे घोडे़ भी दसों दिशाओं में दौड़ लगाने लगे। महाराज ! गन्धर्व नगरों के समान सहस्त्रों विशाल रथ रथियों और घोड़ों से हीन दिखायी देने लगे। राजेन्द्र ! अर्जुन के बाणों से घायल हुए अश्वारोही भी जहां-तहां इधर-उधर भागते दिखाये दे रहे थे। उस समय पाण्डुपुत्र अर्जुन की भुजाओं का बल देखा गया, उन्होंने अकेले ही युद्ध में रथों, सवारों और हाथियों को भी परास्त कर दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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