महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 81 श्लोक 21-42

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एकाेेशीतितम (81) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकाेेशीतितम अध्याय: श्लोक 21-42 का हिन्दी अनुवाद

नरेश्वर ! भरतश्रेष्ठ ! तदनन्तर अर्जुन को तीन अंगों वाली विशाल सेना से घिरा देख भीमसेन मरने से बचे हुए आपके कतिपय रथियों को छोड़कर बडे़ वेग से धनंजय के रथ की ओर दौडे़। उस समय आपके अधिकांश सैनिक मारे जा चुके थे, बहुत-से घायल होकर आतुर हो गये थे। फिर तो कौरव-सेना में भगदड़ मच गयी। यह सब देखते हुए भीमसेन अपने भाई अर्जुन के पास आ पहुंचे। भीमसेन अभी थके नहीं थे, उन्होंने हाथ में गदा ले उस महासमर में अर्जुन द्वारा मारे जाने से बचे हुए महाबली घोड़ों और सवारों का संहार कर डाला। मान्यवर नरेश ! तदनन्तर भीमसेन ने कालरात्रि के समान अत्यन्त भयंकर, मनुष्यों, हाथियों और घोड़ों को काल का ग्रास बनानेवाली, परकोटों, अट्टालिकाओं और नगर द्वारों को भी विदीर्ण कर देनेवाली अपनी अति दारूण गदा का वहां मनुष्यों, गजराजों तथा अश्वों पर तीव्र वेग से प्रहार किया। उस गदा ने बहुत से घोड़ों और धुड़सवारों का संहार कर डाला। पाण्डुपुत्र भीम ने काले लोहे का कवच पहने हुए बहुत-से मनुष्यों और अश्वों को भी गदा से मार गिराया। वे सब-के-सब आर्तनाद करते हुए प्राणशून्य होकर गिर पडे़। घायल हुए कौरव सैनिक खून से नहाकर दांतों से ओठ चबाते हुए धरती पर सो गये थे, किन्हीं का माथा फट गया था, किन्हीं की हड्डियां चूर-चूर हो गयी थीं और किन्हीं के पांव उखड़ गये थे। वे सब-के-सब मांसभक्षी पशुओं के भोजन बन गये थे। दस हजार घोड़ों और बहुसंख्यक पैदलों का संहार करके क्रोध में भरे हुए भीमसेन हाथ में गदा लेकर इधर-उधर दौड़ने लगे ।
भरतनन्दन ! भीमसेन को गदा हाथ में लिये देख आपके सैनिक कालदण्ड लेकर आया हुआ यमराज मानने लगे। मतवाले हाथी के समान अत्यन्त क्रोध में भरे हुए पाण्डुनन्दन भीमसेन ने शत्रुओं की गजसेना में प्रवेश किया, मानों मगर समुद्र में जा घूसा हो। विशाल गदा हाथ में ले अत्यन्त कुपित हो भीमसेन ने हाथियों की सेना में घूसकर उसे क्षणभर में यमलोक पहुंचा दिया। कवचों, सवारों और पताकाओं सहित मतवाले हाथियों को हमने पंखधारी पर्वतो के समान धराशायी होते देखा था। महाबली भीमसेन उस गजसेना का संहार करके पुनः अपने रथ पर आ बैठे और अर्जुन के पीछे-पीछे चलते रहे। महाराज ! उस समय भीमसेन और अर्जुन के अस्त्र-शस्त्रों से घिरी हुई आपकी अधिकांश सेना उत्साहशून्य-विमुख और जडवत् हो गयी। उस सेना को जडवत्, उद्योगशून्य हुई देख अर्जुन ने प्राणों को संतप्त कर देनेवाले बाणों द्वारा उसे आच्छादित कर दिया। युद्धस्थल में गाण्डीवधारी अर्जुन के बाणों से छिदे हुए मनुष्य, घोड़े, रथ और हाथी केसरयुक्त कदम्बपुष्पों के समान सुशोभित हो रहे थे। नरेश्वर ! तदनन्तर मनुष्यों, घोड़ों, और हाथियों के प्राण लेनेवाले अर्जुन के बाणोंद्वारा हताहत होते हुए कौरवों का महान् आर्तनाद प्रकट होने लगा। महाराज ! उस समय अत्यन्त भयभीत हो हाहाकार मचाती और दूसरे की आड़ में छिपती हुई आपकी सेना अलातचक्र के समान वहां चक्कर काटने लगी। तत्पश्चात् कौरवों की सेना के साथ महान् युद्ध होने लगा। उसमें कोई भी ऐसा रथ, सवार, घोड़ा अथवा हाथी नहीं था, जो अर्जुन के बाणों से विदीर्ण न हो गया हो। उस समय सारी सेना जलती हुई सी दिखायी देती थी। बाणों से उसके कवच छिन्न-भिन्न हो गये थे तथा वह खून से लथपथ हो खिले हुए अशोकवन के समान प्रतीत होती थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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