महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 62 श्लोक 58-65
द्विषष्टि (62) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
जैसे देवता वज्रधारी इन्द्र की रक्षा करते है, उसी प्रकार सुभद्राकुमार आदि पाण्डव योद्धा युद्ध में तत्पर हुए महा-धनुर्धर वीर भीमसेन की सब और से रक्षा करते थे ।खून में सनी तथा हाथियों के रक्त से भीगी हुई गदा लिये रौद्ररूपधारी भीमसेन यमराज के समान दिखायी देते थे । भारत ! भीमसेन गदा लेकर सम्पूर्ण दिशाओं में व्यायाम सा कर रहे थे। समरभूमि में भीम को हम लोगों ने ताण्डव-नृत्य करते हुए भगवान् शंकर के समान देखा । महाराज ! भीमसेन की भारी और भयंकर गदा सबका संहार करने वाली है। हमे तो वह यमदण्ड के समान दिखायी देती थी। प्रहार करने पर उससे इन्द्र वज्र की गडगडाहट के समान आवाज होती थी ।रक्त से भीगी तथा केश और भज्जा से मिली हुई हमने प्रलयकाल में क्रोध से भरकर समस्त पशुओं (जीवो) का संहार करनेवाले रूद्रदेव के पिनाकके समान समझा था ।जैसे चरवाहा पशुओं के झुंड को डंडे से हांकता है, उसी प्रकार भीमसेन हाथियों के समूहो को अपनी गदा से हांक रहे थे । महाराज ! चारों और से गदा और बाणों की मार पडने पर आपकी सेना के समस्त हाथी अपने सैनिको को कुचलते हुए भाग रहे थे ।जैसे आंधी बादलों को छिन्न-भिन्न करके उडा देती है, उसी प्रकार भीमसेन उस भयंकर युद्ध में हथियारों की सेना को नष्ट करके श्मशानभूमि में त्रिशूलधारी भगवान् शंकर के समान खडे थे।
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