महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 91 श्लोक 1-15
एकनवतितम (91) अध्याय: कर्ण पर्व
भगवान श्रीकृष्ण का कर्ण को चेतावनी देना और कर्ण का वध
संजय कहते हैं- राजन् ! उस समय रथ पर बैठे हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण से कहा- राधानन्दन ! सौभाग्य की बात है कि अब यहाँ तुम्हें धर्म की याद आ रही है ! प्रायः यह देखने में आता है कि नीच मनुष्य विपत्ति में पड़ने पर दैव की ही निंदा करते हैं। अपने किये हुए कुकर्मों की नहीं। कर्ण ! जब तुमने तथा दुर्योधन, दुःशासन और सुबल पुत्र शकुनि ने एक वस्त्र धारण करने वाली रजस्वला द्रौपदी को सभा में बुलवाया था, उस समय तुम्हारे मन में धर्म का विचार नहीं उठा था ? जब कौरवसभा में जूए के खेल का ज्ञान न रखने वाले राजा युधिष्ठिर को शकुनि ने जान-बूझकर छलपूर्वक हराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था? कर्ण ! वनवास का तेरहवाँ वर्ष बीत जाने पर भी जब तुमने पाण्डवों का राज्य उन्हें वापस नहीं दिया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहा चला गया था? जब राजा दुर्योधन ने तुम्हारी ही सलाह लेकर भीमसेन को जहर मिलाया हुआ अन्न खिलाया और उन्हें सर्पों से डँसवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था? राधानन्दन ! उन दिनों वारणावतनगर में लाक्षाभवन के भीतर सोये हुए कुन्तीकुमारों को जब तुमने जलाने का प्रयत्न कराया था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था?
राधानन्दन ! पहले नीच कौरवों द्वारा क्लेश पीती हुई निरपराध द्रौपदी को जब तुम निकट से देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था ? (याद है न, तुमने द्रौपदी से कहा था) कष्णे पाण्डव रष्ट हो गये, सदा के लिये नरक में पड़ गये । अब तू किसी दूसरे पति का वरण कर ले। जब तुम ऐसी बात कहते हुए गजगामिनी द्रौपदी को निकट से आँखें फाड़-फाड़कर देख रहे थे, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था ? कर्ण ! फिर राज्य में लोभ में पड़कर तुमने शकुनि की सलाक के अनुसार जब पाण्डवों को दुबारा जूए के लिये बुलवाया, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ गया था?
जब युद्ध में तुम बहुत-से महारथियों ने मिलकर बालक अभिमन्यु को चारों ओर से घेरकर मार डाला था, उस समय तुम्हारा धर्म कहाँ चला गया था ? यदि उन अवसरों पर यह धर्म नहीं था तो आज भी यहाँ सर्वथा धर्म की दुहाई देकर तालु सुखाने से क्या लाभ? सूत ! अब यहाँ धर्म के कितने ही कार्य क्यों न कर डालो, तथापि जीते-जी तुम्हारा छुटकारा नहीं हो सकता। पुष्कर ने राजा नल को जूए में जीत लिया था; किंतु उन्होंने अपने ही पराक्रम से पुनः अपने राज्य और यश दोनों को प्राप्त कर लिया। इसी प्रकार लोभशून्य पाण्डव भी अपनी भुजाओं के बल से सम्पूर्ण सगे-सम्बन्धियों के साथ रहकर समरांगण में बढे़-चढे़ शत्रुओं का संहार करके फिर अपना राज्य प्राप्त करेंगे। निश्चय ही ये सोमकों के साथ अपने राज्य पर अधिकार कर लेंगे। पुरूषसिंह पाण्डव सदैव अपने धर्म से सुरक्षित हैं; अतः इनके द्वारा अवश्य धृतराष्ट्र के पुत्रों का नाश हो जायगा। संजय कहते हैं- भारत ! उस समय भगवान श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर कर्ण ने लज्जा से अपना सिर झुका लिया, उससे कुछ भी उत्तर देते नहीं बना।
« पीछे | आगे » |