महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 182 श्लोक 23-30

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:२३, १८ सितम्बर २०१५ का अवतरण ('==द्वयशीत्यधिकशततम (182) अध्‍याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

द्वयशीत्यधिकशततम (182) अध्‍याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्‍यानपर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: द्वयशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 23-30 का हिन्दी अनुवाद


वायु तीव्र वेग से बहने लगी, धरती डोलने लगी, गीध, कौवे और कङ्क प्रसन्नतापूर्वक सब ओर उड़ने लगे । दिशाओं में दाह-सा होने लगा, गीदड़ बार-बार भयंकर बोली बोलने लगा, दुन्दुभियां बिना बजाये ही जोर-जोर से बजने लगीं । इस प्रकार महात्मापरशुराम के मूर्छित होकर पृथ्‍वी पर गिरते ही ये समस्त उत्पातसूचक अत्यन्त भयंकर अपशकुन होने लगे कुरूनन्दन! इसी समय परशुरामजी सहसा उठकर क्रोध से मूर्छित एवं विह्वल हो पुन: युद्ध के लिये मेरे समीप आये । परशुराम ताड़ के समान विशाल धनुष लिये हुए थे। जब वे मेरे लिये बाण उठाने लगे, तब दयालु महर्षियों ने उन्हें रोक दिया। वह बाण कालाग्नि के समान भयंकर था। अमेयस्वरूप भार्गव ने कुपित होने पर भी मुनियों के कहने से उस बाण का उपसंहार कर लिया । तदनन्तर मन्द किरणों के पुञ्ज से प्रकाशित सूर्यदेव युद्धभूमि की उड़ती हुई धुलों से आच्छादित हो अस्ताचल को चले गये। रात्रि आ गयी और सुखद शीतल वायु चलने लगी। उस समय हम दोनों ने युद्ध समाप्त कर दिया । राजन्! इस प्रकार प्रतिदिन संध्‍या के समय युद्ध बंद हो जाता और प्रात:काल सूर्योदय होने पर पुन: अत्यन्त भयंकर संग्राम छिड़ जाता था। इस प्रकार हम दोनों के युद्ध करते-करते तेईस दिन बीत गये ।

इस प्रकारश्रीमहाभारत उद्योपर्व के अन्तर्गत अम्बोपाख्‍यानपर्व में परशुराम-भीष्‍मयुद्धविषयक एक सौ बयासीवां अध्‍याय पूरा हुआ ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।