महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 182 श्लोक 23-30
द्वयशीत्यधिकशततम (182) अध्याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्यानपर्व)
वायु तीव्र वेग से बहने लगी, धरती डोलने लगी, गीध, कौवे और कङ्क प्रसन्नतापूर्वक सब ओर उड़ने लगे । दिशाओं में दाह-सा होने लगा, गीदड़ बार-बार भयंकर बोली बोलने लगा, दुन्दुभियां बिना बजाये ही जोर-जोर से बजने लगीं । इस प्रकार महात्मापरशुराम के मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिरते ही ये समस्त उत्पातसूचक अत्यन्त भयंकर अपशकुन होने लगे कुरूनन्दन! इसी समय परशुरामजी सहसा उठकर क्रोध से मूर्छित एवं विह्वल हो पुन: युद्ध के लिये मेरे समीप आये । परशुराम ताड़ के समान विशाल धनुष लिये हुए थे। जब वे मेरे लिये बाण उठाने लगे, तब दयालु महर्षियों ने उन्हें रोक दिया। वह बाण कालाग्नि के समान भयंकर था। अमेयस्वरूप भार्गव ने कुपित होने पर भी मुनियों के कहने से उस बाण का उपसंहार कर लिया । तदनन्तर मन्द किरणों के पुञ्ज से प्रकाशित सूर्यदेव युद्धभूमि की उड़ती हुई धुलों से आच्छादित हो अस्ताचल को चले गये। रात्रि आ गयी और सुखद शीतल वायु चलने लगी। उस समय हम दोनों ने युद्ध समाप्त कर दिया । राजन्! इस प्रकार प्रतिदिन संध्या के समय युद्ध बंद हो जाता और प्रात:काल सूर्योदय होने पर पुन: अत्यन्त भयंकर संग्राम छिड़ जाता था। इस प्रकार हम दोनों के युद्ध करते-करते तेईस दिन बीत गये ।
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