महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 47 श्लोक 52-67

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सप्तचत्वारिंश(47) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: सप्तचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 52-67 का हिन्दी अनुवाद

जिस अनंग की प्रेरणा से सम्पूर्ण अंगधारी प्राणियों का जन्म होता है, जिससे समस्त जीव उन्मत्त हो उठते हैं, उस काम के रूप में प्रकट हुए परमेश्वर को नमस्कार है।। जो स्थूल जगत् में अव्यक्त रूप से विराजमान है, बड़े-बड़े महर्षि जिसके तत्त्व का अनुसंधान करते रहते हैं, जो सम्पूर्ण क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ के रूप में बैठा हुआ है, उस क्षेत्ररूपी परमात्मा प्रणाम है। जो सत्, रज और तम - इन तीन गुणों के भेद से त्रिविध प्रतीत होते हैं, गुणों के कार्यभूत सोलह विकारों से आवृत्त होने पर भी अपने स्वरूप में ही स्थित हैं, सांख्यमत के अनुयायी जिन्हें सत्रहवाँ तत्त्व ( पुरुष ) मानते हैं, उन सांख्यरूप परमात्मा को नमस्कार है। जो नींद को जीतकर प्राणों पर विजय पर चुके हैं और इन्द्रियों को अपने वश में करके शुद्ध सत्त्व में स्थित हो गये हैं, वे निरन्तर योगाभ्यास में लगे हुए योगिजन जिनके ज्योतिर्मय स्वरूप का साक्षात्कार करते हैं, उन योगरूप परमात्मा को प्रणाम है। पाप और पुण्य का क्षय हो जाने पर पुनर्जन्म के भय से मुक्त हुए शान्तचित्त संन्यासी जिन्हें प्राप्त करते हैं, उन मोक्षरूप परमेश्वर को नमस्कार है। सृष्टि के एक हजार युग बीतने पर प्रचण्ड ज्वालाओं से युक्त प्रजयकालीन अग्नि का रूप धारण कर जो सम्पूर्ण प्राणियों का संहार करते हैं, उन घोररूपधारी परमात्मा को नमस्कार है। इस प्रकार सम्पूर्ण भूतों का भक्षण करके जो इस जगत् को जलमय कर देते हैं और स्वयं बालक का रूप धारण कर अक्षयवट के पत्ते पर शयन करते हैं, उन मायामय बालमुकुन्द को नमस्कार है।
जिसपर यह विश्व टिका हुआ है, वह ब्रह्माण्ड कमल जिन पुण्डरीकाक्ष भगवान् की नाभि से प्रकट हुआ है, उन मनलरूपधारी परमेश्वर को प्रणाम है। जिनके हजारों मसतक हैं, जो अन्तर्यामीरूप से सबके भीतर विराजमान हैं, जिनका स्वरूप किसी सीमा में आबद्ध नहीं है, जो चारों समुद्रों के मिलने से एकार्णव जो जाने पर योगनिद्रा का आश्रय लेकर शयन करते हैं, उन योगनिद्रारूप भगवान् को नमस्कार है। जिनके मस्तक के बालों की जगह मेघ हैं, शरीर की सन्धियों में नदियाँ हैं और उदर में चारों समुद्र हैं, उन जलरूपी परमात्मा को प्रणाम है। सृष्टि और प्रलयरूप समस्त विकार जिनसे उत्पन्न होते हैं और जिनमें ही सबका लय होता है, उन कारणरूप परमेश्वर को नमस्कार है। जो रात में भी जागते रहते हैं और दिन के समय साक्षी रूप से स्थित रहते हैं तथा जो सदा ही सबके भले-बुरे को देखते रहते हैं, उन द्रष्टारूपी परमात्मा को प्रणाम है। जिन्हें कोई भी कात करने में रुकावट नहीं होती, जो धर्म का काम करने में सर्वदा उद्यत रहते हैं तथा जो वैकुण्ठधाम के स्वरूप हैं, उन कार्यरूप भगवान् को नमस्कार है। जिन्होंने धर्मात्मा होकर भी क्रोध में भरकर धर्म के गौरव का उल्लंघन करने वाले क्षत्रिय-समाज का युद्ध में इक्कीस बार संहार किया, कठोरता का अभिनय करने वाले उन भगवान् परशुराम को प्रणाम है। जो प्रत्येक शरीर के भीतर वायुरूप में स्थित हो अपने को प्राण-अपान आदि पाँच स्वरूपों में विभक्त करके सम्पूर्ण प्राणियों को क्रियाशील बनाते हैं, उन वायुरूप परमेश्वर को नमस्कार है।। जो प्रत्येक युग में योगमाया के बल से अवतार धारण करते हैं और मास, ऋतु, अयन तथा वर्षों के द्वारा सृष्टि और प्रलय करते रहते हैं, उन कालरूप परमात्मा को प्रणाम है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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