महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 62 श्लोक 39-57

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द्विषष्टितम (62) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: द्विषष्टितम अध्याय: श्लोक 39-57 का हिन्दी अनुवाद

मन और हृदय को कॅपा देने वाली गर्जते हुए भीष्मसेन की उस भीषण गर्जना से सब हाथी एकत्र हो भय के मारे निश्चेष्ट एवं अचेत-से हो गये । तत्पश्चात् द्रौपदी के पांचों पुत्र, महारथी अभिमन्यु, नकुल-सहदेव तथा द्रुपदपुत्र धृष्टघुम्न- यह सब लोग भीष्मसेन के पष्ट भाग की रक्षा करते हुए हाथियों पर उसी प्रकार दौड-दौड़ कर बाण वर्षा करने लगे, जैसे बादल पर्वतों पर पानी की बुंदे बरसाते है ।पाण्डव रथी क्षुर, क्षुरप्र, पीले रंग के भल्ल तथा तेखी बाणों द्वारा तथा तीखे बाणों द्वारा हाथी सवार योद्धाओ के मस्तक काट-काटकर गिराने लगे । उनके शिरो, बाजुबन्दविभुषित भुजाओ और अंकुशों सहित हाथों के गिरने से ऐसा जान पड़ता था, मानो आकाश से आले और पत्थरो की वर्षा हो रही हो ।मस्तक कट जाने पर भी हाथियों की पीठ पर टिके हुए गजारोही योद्धाओ के धड़ पर्वत के शिखरों पर स्थित हुए शिखाहीन वृक्षों के समान दष्टिगोचर हो रहे थे ।हम लोगों ने धृष्टघुम्न द्वारा के द्वारा मारे गये बहुत से हाथियों को देखा, महामना द्रुपदकुमार की मार खाकर बहुत से हाथी गिरे और गिराये जा रहे थे ।इसी समय मगधदेशीय भूपाल ने युद्धस्थल में अभिमन्यु के रथ की और ऐरावत के समान एक विशाल हाथी को प्रेरित किया ।मगधनरेश के उस विशाल गज को आते देख शुरवीरों का नाश करने वाले वीर सुभद्राकुमार ने उसे एक ही बाण में मार डाला ।
फिर शत्रु-नगरी पर विजय पाने वाले अर्जुनपुत्र अभिमन्यु ने मरने पर भी हाथों को न छोड़ने वाले मगधराज का मस्तक रजत-मय पंख वाले भल्ल के द्वारा काट गिराया ।उधर पाण्डुनन्दन भीष्मसेन ने भी गजसेना में घुसकर पर्वतों को विदीर्ण करने वाले देवेन्द्र के समान हाथियों को रौदते हुए समरांगण में विचरने लगे ।महाराज ! उस युद्धस्थल में हमने वज्र मारे हुए पर्वतो की भांति भीमसेन ने एक ही प्रहार से दन्तार हाथियों को भी मरते देखा था ।किन्ही के दांत टूट गये, किन्ही की सूंड कट गयी, कितनो की जांघें टूट गयी, किन्ही की पीठ टूट गयी और कितने ही पर्वतो के समान विशालकाय गजराज मारे गये, कुछ चिग्घाड रहे थे, कुछ कष्ट में कराह रहे थे, कुछ युद्धभूमि से विमुख होकर भागने लगे थे और कुछ भय से व्याकुल होकर मल-मुत्र कह रहे थे। इन सबको मैंने अपनी आंखों से देखा था ।भीमसेन के भागों के उनके द्वारा मारे गये पर्वतोपम हाथी पडे दिखायी दिये। राजन् । अन्य बहुत से हाथियों को मैंने मुंह से फेन फेकते देखा था ।कितने ही विशालकाय हाथी खून उगल रहे थे और उनके कुम्भस्थल फट गये थे। बहुत-से व्याकुल होकर इस भूतल पर पर्वतों के समान पडे़ थे ।भीमसेन का सारा शरीर मेदा तथा रक्त से लिप्त हो रहा था। वे वसा और मज्जासे नहा गये थे और हाथ में गदा लिये दण्डपाणि यमराज के समान उस युद्धभुमि में विचर रहे थे ।हाथियों के खून से भीगी हुई गदा धारण किये भीमसेन पिनाकधारी भगवान् रूद्र के समान घोर एवं भयंकर दिखायी देते थे ।क्रोध में भरे हुए भीमसेन हाथियों को मथे डालते थे; अतः वे उनके द्वारा अत्यन्त कलेश पाकर आपकी सेना को कुचलते हुए सहसा युद्धस्थल से भाग चले ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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