महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 96 श्लोक 1-20

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षष्णवतितम (96) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: षष्णवतितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

युधिष्ठिर का रणभूमि में कर्ण को मारा गया देखकर प्रसन्न हो श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा करना, धृतराष्ट्र का शोकमग्न होना तथा कर्णपर्व के श्रवण की महिमा

संजय कहते हैं- राजन् ! जब कर्ण मारा गया और शत्रुसेना भाग चली, तब दशाहृनन्दन भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को हृदय से लगाकर बडे़ हर्ष के साथ इस प्रकार बोले-धनंजय ! पूर्वकाल में वज्रधारी इन्द्र ने वृत्रासुर का वध किया था और आज तुमने कर्ण को मारा है। वृत्रासुर और कर्ण दोनों के वध का वृत्तान्त बड़ा भयंकर है। मनुष्य सदा इसकी चर्चा करते रहेंगे। वृत्रासुर युद्ध में महातेजस्वी वज्र के द्वारा माया गया था; परंतु तुमने कर्ण को धनुष एवं पैने बाणों से ही मार डाला है। कुन्तीनन्दन ! चलो, हम दोनों तुम्हारे इस विश्वविख्यात और यशोवर्धक पराक्रम का वृत्तान्त बुद्धिमान् कुरूराज युधिष्ठिर को बतावें। उन्हें दीर्धकाल से युद्ध में कर्ण के वध की अभिलाषा थी। आज धर्मराज को यह समाचार बताकर तुम उऋण हो जाओगे। जब यह महायुद्ध चल रहा था, उस समय तुम्हारा और कर्ण का युद्ध देखने के लिये धर्मनन्दन युधिष्ठिर पहले आये थे। परंतु गहरी चोट खाने के कारण वे देरतक युद्धस्थल में ठहर न सके। यहाँ शिविर में जाकर वे पुरूषप्रवर युधिष्ठिर विश्राम कर रहे हैं।
तब अर्जुन ने केशव से तथास्तु कहकर उनकी आज्ञा शिरोधार्य की। तत्पश्चात् बदुकुलतिलक श्रीकृष्ण ने शांतभाव से रथिश्रेष्ठ अर्जुन के उस रथ को युधिष्ठिर के शिविर की ओर लौटाया। अर्जुन से पूवोक्त बात कहकर भगवान श्रीकृष्ण सैनिकों से बोले- वीरों ! तुम्हारा कल्याण हो ! तुम शत्रुओं का सामना करने के लिये सदा प्रयत्नपूर्वक डटे रहना। इसके बाद गोविन्द धृष्टघुम्न, युधामन्यु, नकुल, सहदेव, भीमसेन और सात्यकि से इस प्रकार बोले-अर्जुन ने कर्ण को मार डाला यह समाचार जबतक हमलोग राजा युधिष्ठिर से निवेदन करते हैं, तबतक तुम सभी नरेशों को यहाँ शत्रुओं की ओर से सावधान रखना चाहिये। उन शूरवीरों ने उनकी आज्ञा स्वीकार करके जब जाने पर अनुमति दे दी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को साथ लेकर राजा युधिष्ठिर का दर्शन किया।
उस समय नृपश्रेष्ठ युधिष्ठिर सोने के उत्तम पलंगपर सो रहे थे। उन दोनों ने वहाँ पहुँचकर बड़ी प्रसन्नता के साथ राजा के चरण पकड़ लिये। उन दोनों के हर्षोंलास को देखकर राजा युधिष्ठिर यह समझ गये कि राधापुत्र कर्ण मारा गया; अतः वे शय्या से उठ खडे़ हुए और नेत्रों से आनंद के आँसू बहाने लगे। शत्रुदमन महाबाहु युधिष्ठिर, श्रीकृष्ण और अर्जुन से बारंबार प्रेमपुर्वक बोलने और उन दोनों को हृदय से लगाने लगे।। उस समय अर्जुनसहित यदुकुलतिलक वसुदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण के मारे जाने का सारा समाचार उन्हें यथावत्रूप से कह सुनाया। भगवान श्रीकृष्ण हाथ जोड़कर किंचित् मुस्कराते हुए, जिनका शत्रु मारा गया था, उस राजा युधिष्ठिर से इस प्रकार बोले- राजन् ! बडे़ सौभाग्य की बात है कि गाण्डीवधारी अर्जुन, पाण्डव भीमसेन, पाण्डुकुमार माद्रीनन्दन नकुल-सहदेव और आप भी सकुशल हैं । आप सब लोग वीरों का विनाश करनेवाले इस रोमांचकारी संग्राम से मुक्त हो गये। पाण्डुनन्दन ! अब आगे जो कार्य करने हैं, उन्हें शीघ्र पूर्ण कीजिये। राजन् ! महारथी सूतपुत्र वैकर्तन कर्ण मारा गया, राजेन्द्र ! सौभाग्य से आप विजयी हो रहे हैं। भारत ! आपकी वृद्धि हो रही है, यह परम सौभाग्य की बात है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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