महाभारत सभा पर्व अध्याय 21 श्लोक 16-28

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एकविंश (21) अध्‍याय: सभा पर्व (जरासंधवध पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 16-28 का हिन्दी अनुवाद

   उस स्थान पर राजा बृहद्रथ ने (बृषभरूपधारी) ऋषभ नामक एक मांसभक्षी राक्षस से युद्ध किया और उसे मारकर उसकी खाल से तीन बड़े-बड़े नगाडे़ तैयार कराये, जिन पर चोट करने से महीने भर तक आवाज होती रहती थी। राजा ने उन नगाड़ों को उस राक्षस के ही चमडे़ से मढ़ाकर अपने नगर में रखवा दिया। जहाँ वे नगाड़े बजते थे, वहाँ दिव्य फूलों की वर्षा होने लगती थी। इन तीनों वीरों ने उपर्युक्त तीनों नगाड़ो को फोड़कर चैत्यक पर्वत के परकोटे पर आक्रमण किया। उन सबने अनेक प्रकार के आयुध लेकर द्वार के सामने मगध निवासियों के परम प्रिय उस चैत्यक पर्वत पर धावा किया था। जरासंध को मारने की इच्छा रखकर मानो वे उसके मस्तक पर आघात कर रहे थे। उस चैत्यक का विशाल शिखर बहुत पुराना, किंतु सुदृढ़ था। मगध देश में उसकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। गन्ध और पुष्प की मालाओं से उसकी सदा पूजा की जाती थी। श्रीकृष्ण आदि तीनों वीरों ने अपनी विशाल भुजाओं से टक्कर मारकर उस चैत्यक पर्वत के शिखर को गिरा दिया। तदनन्तर वे अत्यन्त प्रसन्न होकर मगध की राजधानी गिरिव्रज के भीतर घुसे। इसी समय वेदों के पारगामी विद्वान् ब्राह्मणों ने अनेक अपशकुन देखकर राजा जरासंध को उनके विषय में सूचित किया। पुरोहितों ने राजा को हाथी पर बिठाकर उसके चारों ओर प्रज्वलित आग घुमायी। प्रतापी राजा जरासंध ने अनिष्ट की शान्ति के लिये व्रत की दीक्षा के नियमों का पालन करते हुए उपवास किया। भारत ! इधर भगवान् श्रीकृष्ण, भीमसेन और अर्जुन स्नातक व्रत का पालन करने वाले ब्राह्मणों के वेष में अस्त्र शस्त्रों का परित्याग करके अपनी भुजाओं से ही आयुधों का काम लेते हुए जरासंध के साथ युद्ध करने की इच्छा रखकर नगर में प्रविष्ट हुए। उन्होनें खाने-पीने की वस्तुओं, फूल-मालाओं तथा अन्य आवश्यक पदार्थों की दूकानों से सजे हुए हाट-बाट की अपूर्व शोभा और सम्पदा देखी। नगर का वह वैभव बहुत बढ़ा-चढ़ा, सर्वगुण सम्पन्न तथा समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाला था। उस गली की अद्भुत समृद्धि को देखकर वे महाबली नरश्रेष्ठ श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन एक माली से बलपूर्वक बहुत सी मालाएँ लेकर नगर की प्रधान सड़क से चलने लगे। उन सबके वस्त्र अनेक रंग के थे। उन्होनें गले में हार और कानों में चमकीले कुण्डल पहन रक्खे थे। वे क्रमशः बुद्धिमान् राजा जरासंध के महल के समीप जा पहुँचे। जैसे हिमालय की गुफाओं में रहने वाले सिंह गौओं का स्थान ढूँढते हुए आगे बढ़ते हों, उसी प्रकार वे तीनों वीर राजभवन की तलाश करते हुए वहाँ पहुँचे थे। महाराज ! युद्ध में विशेष शोभा पाने वाले उन तीनों वीरों की भुजाएँ साखू के लट्ठे जैसी सुशोभित हो रहीं थी। उन पर चन्दन और अंगुरू का लेप किया गया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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