महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 65 श्लोक 38-53

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पञ्चाषष्टितम (65) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: पञ्चाषष्टितम अध्याय: श्लोक 38-53 का हिन्दी अनुवाद

तात! इस तरह की बातें मैंने पहले पुकार-पुकारकर कही है, परंतु तुमने उन सबको अनसुनी कर दिया है। तुम जो पाण्‍डवोंका अपमान करते आये हो, आज उसी का यह फल प्राप्‍त हुआ है ।महाबाहो! प्रभो! अनायास ही महान् कर्म करने वाले पाण्‍डवों के अवध्‍य होने में जो हेतु है, उसे बताता हूं, सुनो ।लोक में ऐसा कोई प्राणी न हुआ है, न है और न होगा,जो शार्ङ्ग धनुष धारण करने वाले भगवान् श्रीकृष्‍ण के द्वारा सुरक्षित इन सब पाण्‍डवों पर विजय पा सके तथा देवता, असुर और मनुष्‍यों में ऐसा भी कोई नहीं है, जो उन भगवान् श्रीहरि को यथार्थ रूप से जान सके ।तात धर्मज्ञ! पवित्र अंत:करण वाले मुनियों ने मुझसे जो पुराणप्रतिपादित यथार्थ बातें कही है, उन्‍हें बताता हूं, सुनो । पहले की बात है, समस्‍त देवता और महर्षि गन्‍धमादन पर्वतपर आकर पितामह ब्रह्माजी के पास बैठे ।उस समय उनके बीच में बैठे हुए प्रजापतिब्रह्माने आकाश में खड़ा हुआ एक श्रेष्‍ठ विमान देखा, जो अपने तेज से प्रज्‍वलित हो रहा था ।अपने मन को संयम में रखने वाले ब्रह्माजी ने ध्‍यान से यथार्थ बात जानकर हाथ जोड़ लिये और प्रसन्‍नचित्त होकर उन परम पुरूष परमेश्‍वर नमस्‍कार किया । ॠषि तथा देवता ब्रह्माजी को खडे़ (और हाथ जोड़े) हुए देख स्‍वयं भी उस परम अद्भुत तेज का दर्शन करते हुए हाथ जोड़कर खडे़ हो गये ।
ब्रह्मवत्ताओं में श्रेष्‍ठ, परम धर्मज्ञ, जगत्स्‍त्रठा ब्रह्माजी ने उन तेजोमय परम पुरूष का यथावत् पूजन करके उनकी स्‍तुति की ।प्रभो! आप सम्‍पूर्ण विश्र्व को आच्‍छादित करने वाले, विश्र्वरूप और विश्र्व स्‍वामी हैं। विश्र्व में सब ओर आपकी सेना है। यह विश्र्व आपका कार्य है। आप सबको अपने वश में रखने वाले है। इसीलिये आपको विश्‍वेश्र्वर और वासुदेव कहते है। आप योगस्‍वरूप देवता हैं, मैं आपकी शरण में आया हूं । विश्र्वरूप महादेव! आपकी जय हो, लोकहित में लगे रहने वाले परमेश्र्वर! आपकी जय हो। सर्वत्र व्‍याप्‍त रहने वाले योगीश्र्वर! आपकी जय हो। योग के आदि और अंत! आपकी जय हो ।आपकी नाभि से आदि कमल की उत्‍पत्ति हुई है, आपके नेत्र विशाल हैं, आप लोकेश्र्वरों के भी ईश्र्वर है; आपकी जय हो। भूत, भविष्‍य और वर्तमान के स्‍वामी! आपकी जय हो। आपका स्‍वरूप सौम्‍य है, मैं स्‍वयम्‍भू ब्रह्मा आपका पुत्र हूं। आप असंख्‍य गुणों के आधार और सबको शरण देने वाले हैं, आपकी जय हो। शार्ङ्ग-धनुष धारण करने वाले नारायण! आपकी महिमा का पार पान बहुत ही कठिन है, आपकी जय हो ।आप समस्‍त कल्‍याणमय गुणों से सम्‍पन्‍न, विश्र्वमूर्ति और निरामय हैं; आपकी जय हो। जगत् का अभीष्‍ट साधन करने-वाले महाबाहु विश्‍वेश्र्वर! आपकी जय हो ।आप महान् शेषनाग और महावाराह-रूप धारण करने-वाले हैं, सबके आदि कारण हैं। हरिकेश! प्रभो! आपकी जय हो, आप पीताम्‍बरधारी, दिशाओं के स्‍वामी, विश्र्व के आधार, अप्रमेय और अविनाशी हैं ।व्‍यक्‍त और अव्‍यक्‍त-सब आपही का स्‍वरूप है, आपके रहने का स्‍थान असीम-अनंत है, आप इन्द्रियों के नियंता हैं। आपके सभी कर्म शुभ-ही-शुभ हैं। आपकी कोई इयत्ता नहीं हैं, आप आत्‍मस्‍वरूप के ज्ञाता, स्‍वभावत: गम्‍भीर और भक्‍तों की कामनाएं पूर्ण करने वाले हैं; आपकी जय हो ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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