महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 65 श्लोक 54-69

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पञ्चाषष्टितम (65) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: पञ्चाषष्टितम अध्याय: श्लोक 54-69 का हिन्दी अनुवाद

ब्रह्मन्! आप अनंतबोधस्‍वरूप हैं, नित्‍य हैं और सम्‍पूर्ण भूतों को उत्‍पन्‍न करने वाले हैं। आपको कुछ करना बाकी नहीं है, आपकी बुद्धि पवित्र है, आप धर्म का तत्‍व जानने वाले और विजयप्रदाता हैं ।पूर्णयोगस्‍वरूप परमात्‍मन्! आपका स्‍वरूप गूढ गोता हुआ भी स्‍पष्‍ट है। अब तक जो हो चुका है और जो हो रहा है, सब आपका ही रूप है। आप सम्‍पूर्ण भूतों के आदि कारण और लोकतत्‍व के स्‍वामी हैं। भूतभावन! आपकी जय हो ।आप स्‍वयम्‍भू हैं, आपका सौभाग्‍य महान् है। आप इस कल्‍प का संहार करने वाले एवं विशुद्ध परब्रह्म हैं। ध्‍यान करने-से अंत:करण में आपका आविर्भाव होता है, आप जीवमात्रके प्रियतम परब्रह्म हैं, आपकी जय हो ।आप स्‍वभावत: संसार की सृष्टि में प्रवृत्त रहते हैं, आप ही सम्‍पूर्ण कामनाओं के स्‍वामी परमेश्र्वर हैं। अमृत ही उत्‍पत्ति के स्‍थान, सत्‍यस्‍वरूप, मुक्‍तात्‍मा और विजय देने वाले आप ही हैं ।देव! आप ही प्रजापतियों के भी पति, पद्मनाभ और महाबली हैं। आत्‍मा और महाभूत भी आप ही हैं। सत्‍व-स्‍वरूप परमेश्र्वर! सदा आपकी जय हो ।पृथ्‍वीदेवी आपके चरण हैं, दिशाएं बाहु है और द्युलोक मस्‍तक है। मैं ब्रह्मा आपका शरीर, देवता अङ्ग-प्रत्‍यङ्ग और चन्‍द्रमा तथा सूर्य नेत्र हैं ।तप और सत्‍य आपका बल है तथा धर्म और कर्म आपका स्‍वरूप है। अग्नि आपका तेज, वायु सांस और जल पसीना है ।
अश्र्विनी कुमार आपके कान और सरस्‍वती देवी आप की जिह्वा हैं। वेद आपकी संस्‍कार निष्‍ठा हैं। यह जगत् सदा आपही के आधार पर टिका हुआ है ।योग-योगीश्र्वर! हम न तो आपकी संख्‍या जानते हैं, न परिणाम। आपके तेज, परा‍क्रम और बल का भी हमें पता नहीं है। हम यह भी नहीं जानते कि आपका आविर्भाव कैसे होता है ।देव! हम तो आपकी उपासना में लगे रहते हैं। आपके नियमों का पालन करते हुए आपके ही चरण हैं। विष्‍णों! हम सदा आप परमेश्र्वर एवं महेश्र्वर का पूजन ही करते हैं। आपकी ही कृपा से हमने पृथ्‍वी पर ॠषि, देवता, गन्‍धर्व, यक्ष, राक्षस, सर्प, पिशाच, मनुष्‍य, मृग, पक्षी तथा कीडे़-मकोडे़ आदि की सृष्टि की है ।पद्मनाभ! विशाललोचन! दु:खहारी श्रीकृष्‍ण ! आप ही सम्‍पूर्ण प्राणियों के आश्रय और नेता हैं, आप ही संसार के गुरू हैं। देवेश्र्वर! आपकी कृपादृष्टि होने से ही सब देवता सदा सुखी रहते हैं ।देव! आपके ही प्रसाद से पृथ्‍वी सदा निर्भय रही है, इसलिये विशाललोचन! आप पुन: पृथ्‍वी पर यदुवंश में अवतार लेकर उसकी कीर्ति बढा़इये ।प्रभो! धर्म की स्थापना, दैत्यों के वध ओर जगत् की रक्षा के लिये हमारी प्रार्थना अवश्‍य स्वीकार कीजिये ।वासुदेव! आप ही पूर्णतम परमेश्‍वर हैं। आपका जो परम गुह्य यथार्थरूप है, उसी का यहां इस रूप में आपकी कृपा से ही गान किया गया हैं ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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