महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 196 श्लोक 24-35
षण्णवत्यधिकशततम (196) अध्याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्यान पर्व)
वृष्णिवंशके प्रमुख महारथी महान् धनुर्धर बलवान् सात्यकि एक लाख रथियों से घिरकर गर्जना करते हुए आगे बढ़ रहे थे ।क्षत्रदेव और ब्रह्मदेव ये दोनों पुरूषरत्न रथ पर बैठकर सेना के पिछले भाग की रक्षा करते हुए पीछे-पीछे जा रहे थे । इनके सिवा और भी बहुत-से छकडे़, दूकानें, वेशभूषा के सामान, सवारियां, सामान ढोने की गाडी, एक सहस्त्र हाथी, अनेक अयुत घोडे़, अन्य छोटी-मोटी वस्तुएं, स्त्रियां, कृश और दुर्बल मनुष्य, कोश-संग्रह और उनके ढोने वाले लोग तथा कोष्ठागार आदि सब कुछ संग्रह करके राजा युधिष्ठिर धीरे-धीरे गजसेना के साथ यात्रा कर रहे थे । उनके पीछे सुचित्त के पुत्र रणदुर्मद सत्यधृति, श्रेणिमान्, वसुदान तथा काशिराज के सामर्थ्यशाली पुत्र जा रहे थे। इन सबका अनुगमन करने वाले बीस हजार रथी, घुंघरूओं से सुशोभित दस करोड़ घोडे़, ईषादण्ड़ के समान दांत वाले, प्रहारकुशल, अच्छी जाति में उत्पन्न, मदस्त्रावी और मेघों की घटा-के समान चलने वाले बीस हजार हाथी थे ।भारत! इनके सिवा, युद्ध में महात्मा युधिष्ठिर के पास निजी तौर पर सत्तर हजार हाथी और थे, जो जल बरसान वाले बादलों की भांति अपने गण्डस्थल से मद की धारा बहाते थे। वे सबके सब जङ्गम पर्वतों की भांति राजा युधिष्ठिर का अनुसरण कर रहे थे । इस प्रकार बुद्धिमान् कुन्तीपुत्र के पास भयंकर एवं विशाल सेना थी, जिसका आश्रय लेकर वे धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन से लोहा ले रहे थे । इन सबके अतिरिक्त पीछे-पीछे लाखों पैदल मनुष्य तथा उनकी सहस्त्रों सेनाएं गर्जना करती हुई आगे बढ़ रही थीं ।उस समय उस रणक्षेत्र में लाखों मनुष्य हर्ष और उत्साह में भरकर हजारों भेरियों तथा शङ्खों की ध्वनि कर रहे थे ।
« पीछे | आगे » |