महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 127 श्लोक 39-58

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सप्तविंशत्यधिकशतकम (127) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: सप्तविंशत्यधिकशतकम अध्याय: श्लोक 39-58 का हिन्दी अनुवाद

किंतु भीमसेन अपने वेग से उन सबको लाँघकर बाणों की वर्षा करके उनके द्वारा थोड़े ही समय में उस गजसेना को मार भगाया। जैसे शरभ की गर्जना से भयभीत हो वन के सारे मृग भाग जाते हैं, उसी प्रकार भीमसेन से डरे हुए समस्त गजराज भैरव स्वर से आर्तनाद करते हुए भाग निकले। फिर उन्होंने बड़े वेग से द्रोणाचार्य की सेना पर चढ़ाई की। उस समय उत्ताल तरंगों के साथ उठे हुए महासागर को जैसे तट की भूमि रोक देती है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य ने भीमसेन को रोका। द्रोण ने मुसकराते हुए से नाराच चलाकर भीमसेन के ललाट में चोट पहुँचायी। उस नाराच से पाण्डुपुत्र भीमसेन ऊपर उठी किरणों वाले सूर्य के समान सुख्शोभित होने लगे। द्रोणाचार्य यह समझकर कि यह भीम भी अर्जुन के समान मेरी पूजा करेगा, उनसे इस प्रकार बोले - ‘महाबली भीमसेन ! तुम समरभूमि में आज मुझ शत्रु को पराजित किये बिना इस शत्रुसेना में प्रवेश नहीं कर सकोगे। ‘तुम्हारे छोटे भाई अर्जुन मेरी अनुमति से इस सेना के भीतर घुस गये हैं। यदि इच्छा हो तो उसी तरह तुम भी जा सकते हो; अन्यथा मेरे इस सैन्यव्यूह में प्रवेश नहीं करने पाओगे’। गुरु का यह वचन सुनकर भीमसेन के नेत्र क्रोध से लाल हो गये, वे बड़ी उतावली के साथ द्रोणाचार्य से निर्भय होकर बोले।
‘ब्रह्मबन्धो ! अर्जुन तुम्हारी अनुमति से इस समरांगण में नहीं प्रविष्ट हुए हैं। वे तो दुर्जय हैं। देवराज इन्द्र की सेना में भी घुस सकते हैं। ‘उन्होंने तुम्हारी बड़ी पूजा करके निश्चय ही तुम्हें सम्मान दिया है, परन्तु द्रोण ! मैं दयालु अर्जुन नहीं हूँ। मैं तो तुम्हारा शत्रु भीमसेन हूँ। ‘तुम हमारे पिता, गुरु और बन्धु हो और हम तुम्हारे पुत्र के तुल्य हैं। हम सब लोग यही मानते हैं और सदा तुम्हारे प्रणतभाव से खड़े होते हैं। ‘परंतु आज तुम्हारे मुँह से जो बात निकल रही है, उससे हम लोगों पर तुम्हारा विपरीत भाव लक्षित होता है। यहद तुम अपने आपको शत्रु मानते हो तो ऐसा ही सही। यह मैं भीमसेन तुम्हारे शत्रु के अनुरूप कर्म कर रहा हूँ। राजन् ! ऐसा कहकर भीमसेन ने गदा उठा ली, मानो यमराज ने कालदण्ड हाथ में लिया हो। उन्होंने उस गदा को घुमाकर द्रोणाचार्य पर दे मारा, किंतु द्रोणाचार्य शीघ्र ही रथ से कूद पड़े। जैसे हवा अपने वेग से वुक्षों को उखाड़ फेंकती है, उसी प्रकार उस गदा ने उस समय घोड़े, सारथि और ध्वज सहित द्रोणाचार्य के रथ को चूर-चूर कर दिया और बहुत से योद्धाओं को भी धूल में मिला दिया।
उस समय उस श्रेष्ठ महारथी वीर को आपके पुत्रों ने पुनः आकर चारों ओर से घेर लिया। योद्धाओं में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य दूसरे रथ पर बैठकर व्यूह के द्वार पर पहुँचे और युद्ध के लिये उद्यत हो गये। महाराज ! तब क्रोध में भरे हुए पराक्रमी भीमसेन ने सामने खड़ी हुई रथसेना पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। युद्ध स्थल में भयुकर बलशाली विजयाभिलाषी आपके महारथी पुत्र बाणों की मार खाकर भी समरांगण में भीमसेन के साथ युद्ध करते रहे। उस समय कुपित हुए दुःशासन ने पाण्डु नन्दन भीमसेन को मार डालने की इच्छा से उनके ऊपर एक तीखी रथ शक्ति चलायी, जो सम्पूर्णतः लोहे की बनी हुई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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