महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 202 श्लोक 91-110

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:१८, १९ सितम्बर २०१५ का अवतरण ('==द्वयधिकद्विशततम (202) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्‍त...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

द्वयधिकद्विशततम (202) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: द्वयधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 91-110 का हिन्दी अनुवाद

तत्‍पश्‍चात् भगवान ब्रहमा ने उन देव श्रेष्‍ठ इन्‍द्र आदि से कहा ‘देवताओं ! वे चाराचर जगत् के स्‍वामी साक्षात् भगवान् शंकर थे । उन महेश्‍वर से बढकर दूसरी कोई सत्‍ता नहीं है । तुम लोगो ने पार्वती जी के साथ जिस अमित तेजस्‍वी बालक का दर्शन किया है, उसके रूप में भगवान शंकर ही थे । उन्‍होंने पार्वती जी की प्रसन्‍नता के लिये बालरूप्‍ धारण कर लिया था; अतः तुमलोग मेरे साथ उन्‍हीं की शरण में चलो। उस बालक के रूप में ये सर्वलोकेश्‍वर प्रभु भगवान महादेव ही थे, किन्‍तु प्रजापतियों सहित सम्‍पूर्ण देवता बाल सूर्य के सदश कान्तिमान उन जगदीश्‍वर को पहचान न सके। तदनन्‍तर ब्रहमा जी ने निकट जाकर भगवान महेश्‍वर को देखा और ये ही सबसे श्रेष्‍ठ हैं, ऐसा जानकर उनक वन्‍दना ।

ब्रहमा जी बोल – भगवन् ! आप ही यज्ञ, आप ही इस विश्‍व के सहारे और आप ही सबको शरण देने वाले हैं, आप ही सबको उत्‍पन्‍न करने वाले भव हैं, आप ही महादेव है, और आप ही परमधाम एवं परमपद हैं। आपने ही इस सम्‍पूर्ण चराचर जगत् को व्‍याप्‍त कर रखा है। भूत, वर्तमान और भविष्‍य के स्‍वामी भगवन् ! लोक नाथ ! जगत्‍पते ! ये इन्‍द्र आपके क्रोध से पीडित हो रहे हैं। आप इन पर कृपा कीजिये।

व्‍यासजी कहते हैं – पार्थ ! ब्रहमाजी की बात सुनकर भगवान महेश्‍वर प्रसन्‍न हो गये और कृपा केलिये उध्‍त हो ठठाकर हॅस पडे। तब देवताओं ने पार्वती देवी तथा भगवान् शंकर को प्रसन्‍न किया । फिर वज्रधारी इन्‍द्र की बॉह जैसी पहले थी, वैसी हो गयी। दक्ष यज्ञ का विनाश करने वाले देवश्रेष्‍ठ भगवान् वृषध्‍वज अपनी पत्‍नी उमा के साथ देवताओं पर प्रसन्‍न हो गये। वे ही रूद्र हैं, वे ही शिव हैं, वे ही अग्नि हैा, वे ही सर्वस्‍वरूप एवं सर्वज्ञ हैं । वे ही इन्‍द्र और वायु है, वे ही दोनों अश्विनी कुमार तथा विघुत् हैं। वे ही भव, वे ही मेघ और वे ही सनातन महादेव हैं । चन्‍द्रमा, ईशान, सूर्य और वरूण भी वे ही हैं। वे ही काल, अन्‍तक, मृत्‍यु, यम, रात्रि, दिन, मास, पक्ष, ऋतु, संध्‍या और संवत्‍सर हैं। वे ही धाता, विधाता, विश्‍व आत्‍मा और विश्‍वरूपी कार्य के कर्ता हैं । वे शरीर हित होकर भी सम्‍पूर्ण देवताओं के शरीर धारण करते हैं। सम्‍पूर्ण देवता सदा उनकी स्‍तुति करते हैं । वे महादेवजी एक होकर भी अनेक हैं। सौ हजार और लाखों रूपों में वे ही विराज रहे हैं। वेदज्ञ ब्राहमण उनके दो शरीर मानते हैं, एक घोर और दूसरा शिव । ये दोनों पृथक पृथक हैं और उन्‍हीं से पुनः बहुसंख्‍यक शरीर प्रकट हो जाते हैं। उनका जो घोर शरीर है, वही अग्नि, विष्‍णु और सूर्य है और उनका सौम्‍य शरीर ही जल, ग्रह, नक्षत्र और चन्‍द्रमा है। वेद, वेदांग, उपनिषद, पुराण और अध्‍यात्‍मशास्‍त्र के जो सिदान्‍त हैं तथा उनमें जो भी जो परम रहस्‍य है, वह भगवान महेश्‍वर ही हैं। अर्जुन ! यह है अजन्‍मा भगवान् महादेव का महामहिम स्‍वरूप। मैं सहस्‍त्रों वर्षो तक लगातार वर्णन करता रहॅू तो भी भगवान् के समस्‍त गुणों का पार नहीं पा सकता।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।