महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 128 श्लोक 41-56

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अष्टविंशत्यधिकशतकम (128) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: अष्टविंशत्यधिकशतकम अध्याय: श्लोक 41-56 का हिन्दी अनुवाद

यह भी आनन्द की बात है कि सत्यपराक्रमी वीर सात्यकि सकुशल हैं। मैं सौभाग्यवश इस समय भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन की गर्जना सुन रहा हूँ। ‘जिसने रणक्षेत्र में इन्द्र को जीतकर अग्निदेव को तृप्त किया था, वह शत्रुहनता अर्जुन मेरे सौभाग्य से युद्ध स्थल में जीवित है। ‘जिसके बाहुबल का भरोसा करके हम सब लोग जीवन धारण करते हैं, शत्रु सेनाओं का संहार करने वाला वह अर्जुन हमारे सौभाग्य से जीवित है। ‘जिसने देवताओं के लिये भी अत्यन्त दुर्जय निवात कवच नामक दानवों को एकमात्र धनुष की सहायता से जीत लिया था, वह कुन्ती कुमार अर्जुन हमारे भाग्य से जीवित है। ‘विराट की गौओं का अपहरण करने के लिये एक साथ आये हुए समस्त कौरवों को जिसने मत्स्य देश की राजधानी के समीप पराजित किया था, वह पार्थ जीवित है, यह सौभाग्य की बात है। ‘जिसने महासमर में अपने बाहुबल से चैदह हजार कालकेय नामक दैत्यों का वध किया था, वह अर्जुन हमारे भाग्य से जीवित है। ‘जिसने अपने अस्त्र बल से दुर्योधन के लिये बलवान् गन्धर्वराज चित्रसेन को परास्त किया था, वह पार्थ सौभाग्यवश जीवित है। ‘जिसके मस्तक पर किरीट शोभा पाता है, जिसके रथ में श्वेत घोड़े जाते जाते हैं, भगवान् कृष्ण जिसके सारथि हैं तथा जो सदा ही मुण्े प्रिय है, वह बलवान् अर्जुन अभी जीवित है, यह सौभाग्य की बात है।
‘जिसने पुत्र शोक से संतप्त हो दुष्कर कर्म करने की इच्छा रखकर जयद्रथ के वध की अभिलरषा से भारी प्रतिज्ञा कर ली है, वह अर्जुन क्या आज युद्ध में आज सिंधुराज को मार डालेगा ? क्या सूर्यास्त होने से पहले ही प्रतिज्ञा पूर्ण करके लौटे हुए, भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा सुरक्षित अर्जुन से मैं मिल सकूँगा ? ‘क्या दुर्योधन के हित में तत्पर रहने वाला राजा जयद्रथ अर्जुन के हाथ से मारा जाकर शत्रुपक्ष को आनन्दित करेगा ? ‘क्या युद्ध में सिंधुराज को अर्जुन के हाथ से मारा गया देखकर राजा दुर्योधन हमारे साथ संधि कर लेगा। ‘क्या मूर्ख दुर्योधन संग्राम भूमि में भीमसेन के हाथ से अपने भाइयों का वध होता देखकर हमारे साथ संधि कर लेगा ? ‘अन्यान्य बड़े - बड़े योद्धाओं को भी धराशायी किये गये देखकर क्या मन्द बुद्धि दुर्योधन को पश्चाताप होगा ? ‘क्या एकमात्र भीष्म की मृत्यु से हम लोगों का वैर शान्त हो जायगा ? क्या शेष वीरों की रक्षा के लिये दुर्योधन हमारे साथ संधि कर लेगा ? स प्रकार राजा युधिष्ठिर जब दया से द्रवित होकर भाँति - भाँति की बातें सोच रहे थे, उस समय दूसरी ओर घोर युद्ध हो रहा था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत जयद्रथ वध पर्व में भीमसेन का कौरव - सेना में प्रवेश युधिष्ठिर का हर्ष विषयक एक सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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