महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 131 श्लोक 19-37

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एकत्रिंशदधिकशतकम (131) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: एकत्रिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 19-37 का हिन्दी अनुवाद

संजय ने कहा - राजन् ! भीमसेन ने रथियों मे श्रेष्ठ राधा पुत्र कर्ण को छोड़कर वहाँ जाने की इच्छा की, जहाँ वीर श्रीकृष्ण और अर्जुन विद्यमान थे। महाराज ! वहाँ से जाते हुए भीमसेन पर आक्रमण करके राधा पुत्र कर्ण ने उनके ऊपर कंकपत्र युक्त बाणों की उसी प्रकार वर्षा आरम्भ कर दी, जैसे बादल पर्वत पर जल की वर्षा करता है। बलवान् अधिरथ पुत्र ने खिलते हुए कमल के समान मुख से हँसकर जाते हुए भीमसेन को युद्ध के लिये ललकारा। कर्ण ने कहा - भीमसेन ! तुम्हारे शत्रुओं ने स्वप्न में भी यह नहीं सोचा था कि तुम युद्ध में पीठ दिखाआगे; परंतु इस समय अर्जुन से मिलने के लिये तुम मुझे पीठ क्यों दिखा रहे हो? पाण्डव नन्दन ! तुम्हारा यह कार्य कुन्ती के पुत्र के योग्य नहीं है। अतः मेरे सम्मुख रहकर मुझपर बाणों की वर्षा करो। कर्ण की ओर से रण क्षेत्र में वह युद्ध की ललकार भीमसेन न सह सके। उन्होंने अर्धमण्डल गति से घूमकर यूत पुत्र के साथ युद्ध आरम्भ कर दिया।
महायशस्वी भीमसेन सम्पूर्ण शस्त्रों के चलाने में निपुण, कवचधारी तथा द्वैरथ युद्ध के लिये तैयार कर्ण के ऊपर सीधे जाने वाले बाणों की वर्षा करने लगे। कलह का अन्त करने की इचछा से महाबली भीमसेन कर्ण को मार डालना चाहते थे और इसीलिये उसे बाणों द्वारा क्षत विक्षत कर रहे थे। वे कर्ण को मारकर उसके अनुगामी सेवकों का भी वध करने की इच्छा रखते थे। माननीय नरेश ! शत्रुओं को संताप देने वाले पाण्डु नन्दन भीमसेन कुपित हसे अमर्षवश कर्ण पर नाना प्रकार के भयंकर बाणों की वर्षा करने लगे। उत्तम अस्त्रों का ज्ञान रखने वाले सूत पुत्र कर्ण ने अपने अस्त्रों की माया से मतवाले हाथी के समान मस्ती से चलने वाले भीमसेन की उस बाण वर्षा को ग्रस लिया। महाबाहु महाधनुर्धर कर्ण अपनी विद्या द्वारा आचार्य द्रोण के समान यथावत् पूजित हो रण क्षेत्रए में विचरने लगा।
राजन् ! क्रोध पूर्वक युद्ध करने वाले कुन्ती पुत्र भीमसेन की हँसी उड़ाता हुआ सा कर्ण उनके सामने जा पहुँचा। कुन्ती कुमार भीम युद्ध स्थल में कर्ण की उस हँसी को न सह सके। सब ओर युद्ध करते हुए समसत वीरों को देखते देखते बलवान् भीमसेन ने कुपित हो सामने आये हुए कर्ण की छाती में वत्सदन्त नामक बाणों द्वारा उसी प्रकार चोट पहुँचायी, जैसे महावत महान् गजराज को अंकुशों द्वारा पीडि़त करता है। तत्पश्चात् विचित्र कवच धारण करने वाले सूत पुत्र को सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंख वाले तथा अच्छी तरह छोड़े हुए इक्कीस बाणों द्वारा पुनः क्षत विक्षत कर दिया। उधर कर्ण के भीमसेन के सोने की जालियों से आच्छादित हुए वायु के समान वेगशाली घोड़ों को पाँच - पाँच बाणों से बेध दिया। राजन् ! तदनन्तर आणे निमेष में ही भीमसेन के रथ पर कर्ण द्वारा बाणों को जाल सा बिछाया जाता दिखायी दिया ।।35।। महाराज ! वहाँ कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा उस समय रथ, ध्वज और सारथि सहित पाण्डु नन्दन भीमसेन आच्छादित हो गये। कर्ण ने चैंसठ बाण मारकर भीमसेन के सुदृढ़ कवच की धज्जियाँ उड़ा दीं। फिर कुपित होकर उसने मर्मभेदी नाराचों से कुन्ती कुमार को अचछी तरह घायल किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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