महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 202 श्लोक 148-158

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द्वयधिकद्विशततम (202) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: द्वयधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 148-158 का हिन्दी अनुवाद

पार्थ ! यह देवाधिदेव भगवान् शिव के ‘शतरूद्रिय’स्‍तोत्र की व्‍याख्‍या की गयी है। यह स्‍तोत्र वेदों के समान परम पवित्र तथा धन, यश और आयु की वृदि् करने वाला है। इसके पाठ से सम्‍पूर्ण मनोरथीं की सिदि होती है । यह पवित्र स्‍तोत्र सम्‍पूर्ण किल्विर्षो का नाशक, सब पापों का निवारक तथा सब प्रकार के दुःख और भय को दूर करने वाला है। जो मनुष्‍य भगवान् शंकर के ब्रहमा, विष्‍णु, महेश और निर्गण निराकार – इन चतुर्विध स्‍वरूप का प्रतिपादन करने वाले इस स्‍तोत्र को सदा सुनता है, वह सम्‍पूर्ण शत्रुओं को जीतकर रूद्रलाक में प्रतिष्ठित होता है। परमात्‍मा शिव का यह चरित सदा संग्राम में विजय दिलाने वाला है, जो सदा उध्‍त रहकर शतरूद्रिय को पढता और सुनता है तथा मनुष्‍यों में जो कोई भी निरन्‍तर भगवान् विश्‍वेश्‍वर का भक्ति भाव से भजन करता है, वह उन त्रिलोचन के प्रसन्‍न होने पर समस्‍त उत्‍तम कामनाओं को प्राप्‍त कर लेता है। कुन्‍तीनन्‍दन ! जाओ, युध्‍द करो । तुम्‍हारी पराजय नहीं हो सकती ; क्‍योंकि तुम्‍हारे मन्‍त्री, रक्षक और पार्श्‍ववर्ती साक्षात् भगवान श्रीकृष्‍ण हैं।

संजय कहते हैं – शत्रुओं का दमन करने वाले भरतश्रेष्‍ठ ! युध्‍द स्‍थल में अर्जुन से ऐसा कहकर पराशरनन्‍दन व्‍यास जी जैसे आये थे, वैसे चले गये। राजन ! पॉच दिनों तक अत्‍यन्‍त घोर युध्‍द करके महाबली ब्राहमण द्रोणाचार्य मारे गये और ब्रहमलोक में चले गये। वेदों के स्‍वाध्‍याय से जो फल मिलता है, वही इस पर्व के पाठ और श्रवण से भी प्राप्‍त होता है। इसमें निर्भय होकर युध्‍द करने वाले वीर क्षत्रियों के महान् यश का वर्णन है। जो प्रतिदिन इस पर्व को पढता अथवा सुनता है, वह पहले के किये हुए बडे बडे पापों तथा घोर कर्मो से मुक्‍त हो जाता है। इसको प्रतिदिन पढने और सुनने से ब्राहमणको यज्ञ का फल प्राप्‍त होता है, क्षत्रियों को घोर युध्‍द में सुयश की प्राप्ति होती है, शेष दो वर्ण के लोगो को भी पुत्र, पौत्र आदि अमीष्‍ट एवं प्रिय वस्‍तुऍ उपलब्‍ध होती हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत नारायणास्‍त्र मोख पर्व में दौ सौ दोवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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