महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 223 श्लोक 1-15
त्रयोविंशत्यधिकद्विशततम (223) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
इन्द्र और बलि का संवाद- इन्द्र के आक्षेपयुक्त वचनों का बलि के द्वारा कठोर प्रत्युतर
युधिष्ठिर ने पूछा –पितामह ! जो राजलक्ष्मी से भ्रष्ट हो गया हो और काल के दण्ड से पिस गया हो, वह भूपाल किस बुद्धि से इस पृथ्वी पर विचरे, यह मुझे बताइये ।भीष्मजी ने कहा-युधिष्ठिर ! इस विषय में जानकार मनुष्य विरोचनकुमार बलि और इन्द्र के संवादरूप एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं । एक समय इन्द्र समस्त असुरों पर विजय पाकर पितामह ब्रह्राजीके पास गये और हाथ जोड़कर प्रणाम करके उन्होंने पूछा – ‘भगवन् ! बलि कहॉ रहता है ?‘ । ‘ब्रह्रान् ! जिसके दान देते समय उसके धन का भण्डार कभी खाली नहीं होता था, उस राजा बलि को मैं ढॅूढ़नेपर भी नहीं पा रहा हॅू ।आप मुझे बलि का पता बताइये ।‘वह राजा बलि ही वायु बनकर चलता, वरूण बनकर वर्षा करता, सूर्य और चन्द्रमा बनकर प्रकाश करता, अग्नि बनकर समस्त प्राणियों को ताप देता तथा जल बनकर सबकी प्यास बुझाता था, उसी राजा बलि को मैं कहीं नहीं पा रहा हॅू । ब्रह्रान् ! आप मुझे बलि का पता बताइये । ‘वही यथासमय आलस्य छोड़कर सम्पूर्ण दिशाओं में प्रकाशित होता, वही अस्त होता और वही वर्षा करता था । ब्रह्रान् ! उस बलि को मै ढॅूढ़ने पर भी नहीं पा रहा हॅू ।
आप मुझे राजा बलि का पता बताइये । ब्रह्राजी ने कहा –मघवन् ! यह मुम्हारेलिये अच्छी बात नहीं है कि तुम मुझसे बलि का पता पूछ रहे हो ।पूछने पर झूठ नहीं बोलना चाहिये, इसलिये मैं तुमसे बलि का पता बता रहा हॅू। शचीपते ! किसी शून्य घर में ऊँट, गौ, गर्दभ अथवा अश्वजाति के पशुओं में जो श्रेष्ठ जीव उपलब्ध हो, उसे बलि समझो । इन्द्र ने पूछा – ब्रह्रान् ! यदि किसी एकान्त गृह में राजा बलि से मेरी भेंट हो जाय तो मैं उन्हें मार डालॅू या न मॉरू, यह मुझे बतावें। ब्रह्राजी ने कहा – इन्द्र ! तुम बालिका का वध न करना, बलि वध के योग्य नहीं है । वासव ! तुम उनसे इच्छानुसार न्यायोचित व्यवहार के विषय में प्रश्न कर सकते हो । भीष्मजी कहते हैं- राजन् ! भगवान् ब्रह्राजी के इस प्रकार आदेश देनेपर देवराज इन्द्र ऐरावत की पीठ पर सवार हो राजलक्ष्मी से सुशोभित होते हुए पृथ्वीपर विचरने लगे। तदनन्तर उन्होने भगवान् ब्रह्रा के बताये अनुसार एक शून्य घर में निवास करनेवाले राजा बलि को देखा, गर्दभ के वेष में अपने आपको छिपा रखा था । इन्द्र बोले-दानव ! तुम गदहे की योनि में पड़कर भूसी खा रहे हो । यह नीच योनि तुम्हें प्राप्त हुई हैं । इसके लिये तुम्हें शोक होता है या नहीं ? आज तुम्हारी ऐसी अवस्था देख रहा हॅू, जो पहले कभी नहीं देखी गयी थी ।तुम शत्रुओं के वश में पड़ गये हो । राजलक्ष्मी तथा मित्रों से हीन हो गये हो तथा तुम्हारा बल पराक्रम नष्ट हो गया है ।
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