महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 139 श्लोक 42-61

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०८:००, २० सितम्बर २०१५ का अवतरण ('==एकोनचत्वारिंशदधिकशतकम (139) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

एकोनचत्वारिंशदधिकशतकम (139) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: एकोनचत्वारिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 42-61 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन ने झुकी हुई गाँठ और सुवर्णमय पंख वाले बाणों से आकाश में सोने की माला सी रच डाली थी, जो बड़ी शोभा पा रही थी। उएस समय भीमसेन के बाणों से आहत होकर आकाश में फैले हुए बाणों के जाल टुकड़े - टुकड़े हाकर बिखर गये। कर्ण और भीमसेन दोनों के बाण समूह स्वर्श करने पर आग की चिनगारियों के समान प्रतीत होते थे। अनायास ही उनकी युद्ध में सर्वत्र गति थी। सुवर्णमय पंख वाले उन बाण के समूह से सारा आकाश छा गया था। उस समय न तो सूर्य का पता चलता था और व वायु ही चल पाती थी। बाणों के समूह से आच्छादित हुए आकाश में कुछ भी जान नहीं पड़ता था। सूत पुत्र कर्ण नाना प्रकार के बााों द्वारा भीमसेन को आचछादित करता हुआ उन महामनस्वी वीर के पराक्रम का तिरस्कार करके उन पर चढ़ आया। माननीय नरेश ! उन दोनों के छोड़े हुए बाण समूह वहाँ परस्पर सटकर अत्यन्त वेग के कारण वायु स्वरूप दिखायी देते थे।
भरतश्रेष्ठ ! उन दोनों पुरुषसिंहों के बाणों के परस्पर टकराने से आकाश में आग प्रकट हों जाती थी। कर्ण ने कुपित होकर भीमसेन के वध की इच्दा से सुनार के माँजे हुए सुवर्ण भूषित तीखे बाणों का प्रहार किया। परंतु भीमसेन ने अपने को सूत पुत्र से विशिष्ट सिद्ध करते हुए बाणों द्वारा आकाश में उन बाणों में से प्रत्येक के तीन - तीन टुकड़े कर डाले और कर्ण से कहा - ‘अरे ! खड़ा रह’। फिर क्रोध एवं अमर्ष में भरे हुए बलवान् भीमसेनने जलाने की इच्छा वाले अग्नि देव के समान भयंकर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। उस समय उन दोनों के गोह चर्म के बने हुए दस्तानों के आघात से च्टाच्ट की आवाज होने लगी। साथ ही हथेली का शब्द और महाभयंकर सिंहनाद भी होने लगा। रथ के पहियों की घरघराहट और प्रत्यन्चा की भयंकर टंकार भी कानों में पड़ने लगी। राजन् ! परस्पर वध की इच्छा रखने वाले कर्ण और भीमसेन के पराक्रम को देखने की अभिलाषा से समस्त योद्धा युद्ध से उपरत हो गये। देवता, ऋषि, सिद्ध, गन्धर्व और विद्याधरगण ‘साधु साधु’ कहकर उन दोनों की प्रशंसा और फूलों की वर्षा करने लगे।
तदननतर क्रोध में भरे हुए सुदृढ़ पराक्रमी महाबाहु भीमसेन ने अपने अस्त्रों द्वारा कर्ण के अस्त्रों का निवारण करके उसे बाणों से बींध डाला। महाबली कर्ण ने भी रण क्षेत्र में भीमसेन के बाणों का निवारण करके उनके ऊपर विषैले सर्पों के समान नौ नाराच चलाये। भीमसेन ने उतने ही बाणों से आकाश में सूत पुत्र के सारे नाराच काट डाले और उससे कहा ‘खड़ा रह, खड़ा रह’। तत्पश्चात् महाबाहु वीर भीमसेन ने कर्ण के ऊपर ऐसा बाण चलाया, जो क्रुद्ध यमराज के समान तथा दूसरे यमदण्ड के सदृश भयंकर था। राजन् ! अपने ऊपर आते हुए भीमसेन के उस बाण को प्रतापी राधा नन्दन कण ने तीन बाणों द्वारा हँसते हुए से काट डाला। तब पाण्डु नन्दन भीमसेन ने पुनः भयानक बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी; परंतु कर्ण ने उन सब अस्त्रों को निर्भयता पूर्वक आत्मसात् कर लिया।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।