अवंति वर्धन
अवंति वर्धन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 270 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डा० अमरनारायण अग्रवाल |
अवंतिवर्धन अवंती के प्रद्योतकुल का अंतिम राजा जो संभवत: मगधराज शिशुनाग का समकालीन था। वैसे, पुराणों के अनुसार शैशुनाग वंश का प्रवर्तक शिशुनाग इस काल के पर्याप्त पहले हुआ, परंतु सिंहली इतिहास के अनुसार, जो संभवत: अधिक सही है, वह बिंबिसार से कई पीढ़ियों बाद हुआ। मगध और अवंती के बीच वत्सों का राज्य था और दीर्घ काल तक मगध-कोशल-वत्स-अवंती का परस्पर संघर्ष चला था। फिर जब वत्स को अवंती ने जीत लिया तब मगध और अवंती प्रकृत्यमित्र हो गए थे। और अब मगध और अवंती के संघर्र्ष में अवंती को अपने मुँह की खानी पड़ी। उसी संघर्ष के अंत में मगध की सेनाओं द्वारा अवंतिवर्धन पराजित हुआ और मध्यप्रदेश का यह भाग भी मगध के हाथ आ गया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ