अलेक्सांदर द्वितीय
अलेक्सांदर द्वितीय
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 259 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री अवनींद्रकुमार विद्यालंकार |
अलेक्सांदर द्वितीय (1812-1881) रूस का ज़ार, (1855-81), निकोलस प्रथम का ज्येष्ठ पुत्र। 2 मार्च, 1855 को निकोलस प्रथम की जब सेवेस्तोपल में भारी पराजय के बाद मृत्यु हुई और जब क्रीमिया का युद्ध चल ही रहा था, यह रूस के सिंहासन पर बैठा। तुर्की से मिली पराजय ने सेना के संगठन और राज्य में आंतरिक सुधार की आवश्यकता को अनिवार्य कर दिया था। यद्यपि अलेक्सांदर स्वभाव से कोमल था, तथापि कम सहिष्णु और प्रतिगामी था। इतिहास में यह 'मुक्तिदाता' और महान् सुधारों का युगप्रवर्तक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मुक्ति कानून द्वारा उसने एक करोड़ भूदासों को स्वाधीन कर दिया, काश्तकारों को बिना मुआवजा दिए वैयक्तिक स्वाधीनता दे दी। 1864 में जिला और प्रांतिक कौंसिलों (जेम्सहस) की और 1870 में निर्वाचित नगरपालिकाओं की स्थापना हुई। इसी काल स्थानीय स्वायत्तशासन का विकास, न्याय के कानूनों में संशोधन, जूरीप्रणाली का प्रारंभ और शिक्षाप्रणाली में संशोधन हुआ। सैनिक शिक्षा अनिवार्य की गई।
रूस की औद्योगिक क्रांति का आरंभ अलेक्सांदर के शासनकाल में ही हुआ। व्यवसाय और रेलवे का विस्तार हुआ। काकेशस पर आधिकार जम गया। मध्य एशिया में रूस के राज्यविस्तार से रूस और ब्रिटेन के संबंधों में तनाव आ गया।
किंतु अलेक्सांदर के शासनसुधार प्यासे के लिए ओस के समान थे। क्रांतिकारी दल इससे संतुष्ट नहीं था। उसकी शक्ति बराबर बढ़ती गई। उसी मात्रा में ज़ार भी प्रतिक्रियावादी होता गया और जीवन के पिछले सालों में उसका प्रयत्न अपने ही सुधारों को व्यर्थ करने में लगा। 1863 में पोलैंड से विद्रोह हुआ जो क्रूरतापूर्वक कुचल दिया गया। तुर्की से 1877 में पुन: युद्ध छिड़ गया। सुदूर पूर्व में आमूर नदी की घाटी का प्रदेश ब्लादीवोस्तक तक (1860) और जापान से सखालिन तक (1875) लेने में ज़ार भी सफल हुआ।
13 मार्च, 1881 को सेंट पीटर्सबर्ग में जमीन के नीचे बम रखकर ज़ार अलेक्सांदर की हत्या कर दी गई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ