जानोस अरानी

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लेख सूचना
जानोस अरानी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 233
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक डॉ. ओंमकारनाथ उपाध्याय

अरानी, जानोस (1817-1882) हंगरी के कवि। नागीज़ालोंता में अभिजात, पर गरीब परिवार में जन्म। पहले अध्यापक हुए। फिर यात्री-अभिनेता। तोल्दी नामक महाकाव्य से उन्होंने यश अर्जित किया। 1848 में ज़ालोंता की जनता ने उन्हें हंगरी की लोकसभा के लिए अपना प्रतिनिधि चुना। अगले साल उन्होंने क्रांतिकारी सरकार की नौकरी कर ली जिसे सरकार के पतन पर छोड़कर उन्हें घर लौट जाना पड़ा। एक साल बाद हंगरी में भाषा और साहित्य के प्राध्यापक नियुक्त हुए।

अब उन्होंने अपने देश और जनता के दीन जीवन पर विचार करना शुरू किया। तत्काल उनकी कविताओं में पिछले राजनीतिक प्रयत्नों की असफलता के कारण देश के नेताओं और परिस्थितियों के प्रति व्यंग्यात्मक हास्यजनक धारा फूट पड़ी। इसी चितवृत्ति और व्यंग्यात्मक शैली में उन्होंने अपना 'बोलोंद इस्तोक' लिखा (1850)। अगले अनेक वर्ष उन्होंने हंगरी का अपना मगयार (जातीय) मधुर बैलेड लिखा। 1858 में वे हंगरी की अकादमी के सदस्य चुने गए और दो साल बाद किस्फ़ालूदी सोसाइटी के संचालक। अरानी ने अपनी कविताओं द्वारा अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार जीते। उनका हंगरी के साहित्य, विशेषकर कविता के क्षेत्र में अपना स्थान है। उन्होंने उसे एक नई तथा राष्ट्रीय दिशा दी। कविता यथार्थ जीवन और प्रकृति के संपर्क में आई। साहित्य को परंपरा की भूमि पर रखते हुए भी उन्होंने उसे जनता के धरातल पर खींचा। मगयार कवियों में वे सर्वाधिक जनप्रिय और कलाप्राण हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ