अभिसमय
अभिसमय
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 186 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | श्री दलसुख डी. मालावणिया |
अभिसमय बौद्ध स्थविरवाद के सिद्धांतों का वर्णन 'अभिधर्म' के नाम से प्रसिद्ध है किंतु महायान के शून्यवादी माध्यमिक विकास के साथ ही प्रज्ञापारमिता को महत्व मिला और अधिभर्म के स्थान में 'अभिसमय' शब्द का व्यवहार, विशेषत: मैत्रेयनाथ के बाद होने लगा। मैत्रेयनाथ ने 'प्रज्ञापारमिता' शास्त्र के आधार पर 'अभिसमयालंकार' शास्त्र लिखा जो प्रज्ञापारिता अथवा निर्वाण प्राप्त करने के मार्ग का उपदेश देता है। महायान में इस शास्त्र का अत्यधिक महत्व होना स्वाभाविक था क्योंकि उस संप्रदाय के अनुसार प्रज्ञापारमिता की साधना इसमें बताई गई है। प्रज्ञापारमिता शब्द का प्रयोग निर्वाण और निर्वाण का मार्ग इन दोनों अर्थों में होता है। तदनुसार 'अभिसमय' के भी ये दो अर्थ हैं। किंतु साध्य की अपेक्षा साधना, जो साध्य तक ले जाती है, साधकों के लिए विशेष महत्व की वस्तु होती है; अतएव 'निर्वाण की साधना का मार्ग' अर्थ में ही विशेष रूप से 'अभिसमय' शब्द प्रचलित हो गया है। 'अभिसमय' के नाम से प्रसिद्ध ग्रंथों में साधनमार्ग का ही विशेष रूप से वर्णन मिलता है।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.ग्रं.-अभिसमयालंकार के विविध संपादन तथा अनुवाद; ओवर मिलर: ऐक्टा ओरिएंटालिया, खंड 11; कलकत्ता ओरिएंटल सिरीज़, सं. 27।