अभिजाततंत्र
अभिजाततंत्र
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 175 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. गोपीनाथ धवन |
अभिजाततंत्र अभिजाततंत्र (अरिस्टॉक्रैसी) वह शासनतंत्र है जिसमें राजनीतिक सत्ता अभिजन के हाथ में हो। इस संदर्भ में 'अभिजन' का अर्थ है कुलीन, विद्वान, सद्गुणी, उत्कृष्ट। पश्चिम में 'अरिस्टॉक्रैसी' का अर्थ भी लगभग यही है। अफ़लातून और उसके शिष्य अरस्तू ने अपनी पुस्तकों में अरिस्टाक्रैसी को बुद्धिमान, सद्गुणी व्यक्तियों का शासनतंत्र माना है।
अभिजाततंत्र का उल्लेख प्राय: अनेक देशों के इतिहास में मिलता है। विद्वानों का मत है कि भारत में भी प्राचीन काल में कुछ अभिजाततंत्र थे। अफ़लातून की सुविख्यात पुस्तक 'रिपब्लिक' में वर्णित आदर्श नगरव्वयस्था सर्वज्ञ दार्शनिकों का अभिजाततंत्र है। इन दार्शनिकों के लिए अफ़लातून ने कौटुंबिक और संपत्ति संबंधी साम्यवाद की व्यवस्था की है।
राज्यदर्शन के इतिहास में धनिकतंत्र को भी कभी-कभी अभिजाततंत्र माना गया है। इसके दो कारण हैं। प्रथम, दोनों में शासनसत्ता एक व्यक्ति या समस्त वयस्क नागरिकों के हाथ में न होकर थोड़े से व्यक्तियों के हाथ में होती है। दूसरे, कुछ का मत है कि धनसंचय चरत्रिवान ही कर सकते हैं और इस प्रकार वह सद्गुण की अभिव्यक्ति है। अनेक आधुनिक समाजशास्त्रियों का मत है कि राजतंत्र और जनतंत्र में भी वास्तव में संप्रभुता थोड़े से व्यक्तियों के ही हाथ में होती है। राजा को शासन संचालन के लिए चतुर राजनीतिज्ञों की सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है। जनतंत्र में भी प्राय: सामान्य जनता को राजनीति में रुचि नहीं होती, वह अनुगामी होती है। शासन की बागडोर जनतंत्र में भी चतुर राजनीतिज्ञों के ही हाथ में होती हैं और वे धनी होते हैं। वास्तविक राजनीतिक प्रक्रिया में जो संम्पन्न हैं, वही चतुर हैं, वही राजनीतिज्ञ हैं, प्रशासन और राजनीतिक दलबंदी में उन्हीं का सिक्का चलता है।
किंतु अभिजन की नियुक्ति कैसे हो? यदि जननिर्वाचन द्वारा, तो वह एक प्रकार का जनतंत्र है। यदि अन्य किसी प्रकार से, तो अभिजन शासन संकीर्ण, स्वार्थी, दुर्विनीत और धनप्रिय हो जाते हैं और अपनी क्षमता को परिवर्तित परिस्थिति के अनुरूप नहीं रख पाते।
आज जनतंत्र और अभिजाततंत्र की प्रमुख समस्या यही है कि किसी प्रकार राज्य में धन के वृद्धिशील प्रभाव का निराकरण हो और जनसाधारण बुद्धिमान् सेवापरायण व्यक्तियों को अपना शासक निर्वाचित करें।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सं.गं.-अरस्तू: राजनीति (भोलानाथ शर्मा द्वारा अनुवाद); जायसवाल, के.पी.: ' हिंदू पालटी'; अफलातून: आदर्श नगरव्यवस्था (भोलानाथ शर्मा द्वारा अनुवाद); लुडोविसी, ए.एम.: दि डिफेंस ऑव अरिस्टॉक्रैसी।