आरमेइक

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १०:३१, ६ जनवरी २०१७ का अवतरण ('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
आरमेइक
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 421
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक श्री सतीशकुमार रोहणा

आरमेइक (लिपि) संसार की प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण लिपि है। इसका विकास प्राचीन सामी लिपि (द्र.) की उत्तरी शाखा से हुआ है, जिस शाखा से आरमेइक लिपि के विभिन्न अभिलेखों के नमूने उच्चारण कला मूवा बार-रेकब, ई.र्पू. तेइमा ई.पू. मिस्र ई. पाप्यरी ई.पू. आठवी शताब्दी पांचवीं-चौथी पू.पांचवी- (आस्वान),ई. नवीं-आठवीं का उत्तराध शताब्दी तीसरी ई.पू. पांचवी शताब्दी शताब्दी शताब्दी

आरमेइक लिपि के विभिन्न अभिलेखों के नमूने
चित्र:आरमेइक-लिपि.jpg

फोनिशियन लिपि (द्र.) का भी विकास हुआ था। आरमेइक लिपि का प्रयोग सीरिया, फिलस्तीन, मिस्र, अरबिस्तान आदि स्थानों पर होता था। आरमेइक भाषा इसी आरमेइक लिपि में लिखी जाती थी।

आरमेइक के प्राचीनतम अभिलेख ज़र्जीन एवं ज़ेनज़ीरली में प्राप्त कलमू अथवा मिलामूवा के अभिलेख हैं जो ई.पू. नवीं-आठवीं शताब्दी के हैं। आरमेइक लिपि के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का पता बाररेकब (ई.पू. आठवीं शताब्दी), तेइमा (ई.पू. पांचवीं-चौथी शताब्दी), मिस्र अथवा ईजिप्ट (ई.पू. पांचवीं-तीसरी शताब्दी), एवं पाप्यरी (ई.पू. पांचवीं शताब्दी) के अभिलेखों से मिलता है। (द्र. आरमेइक लिपि संबंधी चित्र)।

ई.पू. तीसरी शताब्दी तक आरमेइक लिपि का निरंतर प्रयोग होता रहा। इसके पश्चात्‌ यह लिपि विभिन्न शाखाओं में विभाजित हो गई। कालांतर में इस लिपि से अनेक लिपियों का विकास हुआ जिनमें से मुख्य हैं : बाद की हिब्रू (द्र.), पतलवी (द्र.), पालमेरेन (द्र.), सीरिअक (द्र.), अरबी (द्र.), आर्मेनियन (द्र.) आदि।[१]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.-हंस जेनसेन : साइन, सिंबल ऐंड स्क्रिप्ट।