ख़्वाजा हैदरअली अतिश

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लेख सूचना
ख़्वाजा हैदरअली अतिश
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 362
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक सैयद एहतेशाम हुसेन

आतिश, ख्वाजा हैदरअली (1778-1847 ई.) ये दिल्ली के ख्वाजा अलबख्श के पुत्र थे जो बाद में फैजाबाद चले आए थे। पिता के मर जाने के कारण आतिश ने ठीक से शिक्षा प्राप्त नहीं की। उस समय फैजाबाद अवध का सैनिक केंद्र था। सातिश सैनिकों के समीप रहकर तलवार चलाना सीख गए और एक नवाब के यहाँ नौकर हो गए। नवाब कवि भी थे इसलिए आतिश को फैजाबाद में ही कविताएँ लिखने की प्रेरणा मिली और जब 1815 ई. के लगभग लखनऊ आए तो यहाँ का वातावरण की कविताओं से भरा हुआ दिखाई दिया। आतिश यहाँ आकर मुसहफ़ी को अपनी कविताएँ दिखाने लगे। कम पढ़े लिखे होने पर भी उनकी भाषा बड़ी सरस और भावपूर्ण होती थी। वह किसी राजदरबार से कोई संबंध नहीं रखते थे; बिलकुल स्वतंत्र थे और सूफी दृष्टि रखते थे। इसलिए उनकी कविता में बड़ी जान थी। उस समय लखनऊ में एक बड़े कवि नासिख भी थे जो केवल शब्दों के शुद्ध प्रयोग और अलंकारों से काम लेने को कविता जानते थे। उर्दू कविता का वह युग उनसे बहुत प्रभावित हुआ। आतिश भी इससे बच नहीं सके थे, परंतु उनके स्वतंत्र स्वभाव, तथा भावपूर्ण विचारों ने उनको बहुत ऊँचा कर दिया था और लखनऊ के रंग में रंगा हुआ होने पर भी वह भावपूर्ण कविताएँ लिखते थे। उन्होंने केवल गज़लें लिखी हैं और उन्हीं में अपने नैतिक और धार्मिक विचारों तथा भावों को प्रकट किया है।

उनके शिष्यों में पंडित दयाशंकर 'नसीम' और 'रिंद' बहुत प्रसिद्ध हुए। आतिश के केवल दो संग्रह 'कुल्लियाते आतिश' के नाम से मिलते हैं।[१]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.-मुहम्मद हुसेन 'आज़ाद': आबे-हयात; मुसहफ़ी: तज़किरए-हिंदी; शेफ़ता: गुलशने बेखार; अबुल लैस: लखनऊ का दबिस्ताने-शायरी।