निकोलाइ मिखाइलेविच कैरामज़िन

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लेख सूचना
निकोलाइ मिखाइलेविच कैरामज़िन
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 142
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक लियो स्तेस्फान शौम्यान

निकोलाइ मिखाइलेविच कैरामज़िन (1766-1826) रूसी इतिहासकार एवं लेखक। इनका जन्म जमींदार परिवार में सिविर्स्क नामक प्रांत मे हुआ था । किशोरावस्था से ही कैरामज़िन मेसन समाज में भाग लेने तथा पत्र पत्रिकाओं में लेख लिखने लगे। इसी समय से उनकी रुचि साहित्य तथा इतिहास में बढ़ने लगी। उन्होंने 1791-92 ई. मास्को समाचारपत्र का प्रकाशन आरंभ किया तथा 1802 में ‘यूरोप का समाचार’ नामक समाचारपत्र की नींव डाली। यह समाचारपत्र सारे संसार में जाता था और प्राय 19वीं शताब्दी के अंत तक प्रकाशित होता रहा। उन्होंने विभिन्न लेखकों का रचनाओं का चयन ‘अग्लाया’ नाम से दो भागों में किया (1795-94)। उन्हें कदाचित रूसी साहित्य मे भावुक्ता का प्रवर्तक कहा जा सकता है। गरीब लिजा (1792) उपन्यास की रचनापद्धति से इस भावुक्ताप्रधान धारा की झलक मिलती है। जर्मनी, स्विटज़रलैंड, फ्रांस तथा इंग्लैंड की यात्रा पर लिखे गए रूसी यात्री के पत्र (171-92) में भी इसी भावुक्ताप्रवण धारा की झलक है। विभिन्न रूसी साहित्य पर इनकी रचनाओं ने विपुल प्रभाव डाला। उन्होंने रूसी भाषा में अप्रचलित शब्दों को निकाला तथा उसे धर्म तथा स्लाव प्रभाव से मुक्तकर और व्यावहारिक शब्दों को प्रयोग में लाकर उसे जनोपयोगी रूप दिया। उनका यह कार्य ‘कैरामज़िन का भाषासुधार’ नाम से प्रसिद्ध है। रूस के महान्‌ काव्यकार बी.ए. जुक्वस्कि के .एन बाव्युस्कोव तथा साहित्यकार आ. स. पुश्किन ने इनकी रचना पद्धति का अनुसरण किया है।

वे एक शालिन इतिहासकार भी थे। 1803 ई. से वे इतिहास के अध्ययन में लगे। उन्हे तत्कालीन राजकीय इतिहासकार माना जाता है उनका रूस का इतिहास (1816-19) अपने समय की महान्‌ कृति मानी जाती है। यह 12 खंडों में लिखा गया है। अंतिम खंड इनके मरणोपरांत प्रकाशित हुआ। ऐतिहासिक तथ्यों की दृष्टि से वे क्रमाणिक लेखक माने जाते हैं।[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं. ग्रं.-----डी. व्लाग्य : इतिहास विज्ञान के इतिहासवृत्त, यू. एस. एस. आर., मास्को, 1955; 18वीं शताब्दी के रूसी साहित्य का इतिहास, 3 खंड, मास्को, 1955।