उपादान

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लेख सूचना
उपादान
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 124
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक भिक्षु जगदीश काश्यप

उपादान किसी वस्तु की तृष्णा से उसे ग्रहण करने की जो प्रवृत्ति होती है, उसे उपादान कहते हैं। प्रतीत्यसमुत्पादन की दूसरी कड़ी तण्हापच्चया उपादानं-इसी का प्रतिपादान करती है। उपादान से ही प्राणी के जीवन की सारी भाग दोड़ होती है, जिसे भव कहते हैं।

तृष्णा के न होने से उपादान भी नहीं होता, और उपादान के निरोध से भव का निरोध हो जाता है। यही निर्वाण के लाभ की दिशा है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ