आंबाहलदी
आंबाहलदी
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 332 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉ. भगवनदास वर्मा |
आंबाहलदी या आमाहलदी को संस्कृत में आम्रहरिद्रा अथवा वनहरिद्रा तथा लैटिन में करकुमा ऐरोमैटिका कहते हैं।
यह वनस्पति विशेषकर बंगाल के जंगलों में और पश्चिमी प्रायद्वीप में होती है। इसकी जड़ें रंग में हल्दी की तरह और गंध में कचूर की तरह होती हैं। जड़ें बहुत दूर तक फैलती हैं। पत्ते बड़े और हरे तथा फूल सुगंधित हाते हैं। इसे बागीचों में भी लगाते हैं।
आयुर्वेद में इसे शीतल, वात, रक्त और विष को दूर करनेवाली, वीर्यवर्धक, सन्निपातनाशक, रुचिदायक, अग्नि का दीपन करनेवाली तथा उग्र्व्राण, खाँसी, श्वास, हिचकी, ज्वर और चोट से उत्पन्न सूजन को नष्ट करनेवाली कहा गया है।
इसकी सुखाई हुई गाँठों का व्यवहार वातनाशक और सुगंध देनेवाले द्रव्य के समान किया जाता है। चोट तथा मोच में भी अन्य द्रव्यों के साथ पीसकर गरम लेप का व्यवहार किया जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ